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गुरुवार, 17 मई 2012

जिनकर आचर गंगा स पावन आभा जिनकर सूर्य केर समान

मिथिलाक गाम घर 

जिनकर आचर गंगा स पावन 
आभा जिनकर सूर्य केर समान
ओही नारी केर हम छि जाया 
सदिखन करब हुनक समान .

कमला कोशी गंडक स 
जिनकर ह्रदय गहिर अछि 
हुनका मुख मंडल पर सदिखन 
भाव पीर गंभीर अछि .

आसमान स पैघ अछि ओ
ब्रह्माण्ड स अछि भारी
तखन किअक ओ अहि ठाम जिबय
बनी अबला एक नारी .

लक्ष्मी काली गौरी के ओ
स्वयं देने छैथ रूप
अहि पावन धरनी वसुंधरा पर
ओ छैथ स्वयं ब्रहम केर रूप .

रोशन कुमार झा

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