Blogger templates

शुक्रवार, 4 मई 2012

बिदापत नाच


मधुपनाथ झा
बिदापत नाच


विदापत-नाच एहि नाचक उत्पत्ति दरभंगा जिला मे भेलैक, एहन अंदाज़ कैल जाति छैक | लेकिन अपने मात्रि -भूमि मे इ कोन तरह के अवस्था मे अछि एकरा कहबाक जरूरत नय बुझैत अछि, परंच उत्तरी बिहार के कि
छु जिला आ भागलपुर, पूर्णिया आदि के गाम सब मे आइयो एकर 'क़द्र' छैक |  छोटका लग सब के नाच बनि क रहि गेल अछि | तथाकथित भद्र समाज के लोग एकरा देखबाक मे अपन हेठी बुझैत छथि , लेकिन मुसहर, धाँगड़, दुसाध के ठाम---विवाह, मुंडन संगहि अन्य अवसरो पर एकर धूम मचल रहैत छैक |  नाच मे साथ-आठ टा कलाकार रहैत छैक आ दुइए टा वाद्य यन्त्र-मृदंग और मजीरा रहैत छैक |

त चलू विदापत-नाच के आनंद उठाबि अपन भद्रता के किछ काल लेल....धृग धा, धृग धा तिन्ना --बाजि क मृदंग बौक भ गेल.....कुन कुन कुन कुन... मजीर स्वर मे संग देलकय.... गननायं फलदायकं पंडितं पतितं...' अहाँ सब हंसु जुनि इ मंगलाचरण छलैक, शुद्ध संस्कृत मे | 'किनकां, किनकां, किनकां, किनकां मजीर संग देलकय | नाचअ वाला चारू तरफ जेम्हर-जेम्हर समाज के लोग छल चक्कर देनाइ शुरू केलक | ओकर पाछु एक दोसर नर्तक सेहो घिरनी जकां चक्कर लगा रहल छल आ मुंह के रंग-बिरंग के बनबैत ओय -ओय -ओय -ओय बाजि रहल छल |

धिरिनांगी, धिरिनांगी, धिरिनांगी, धिरिनांगी-- मृदंग ताल बदल दोसर सुर निकाल लक... किनकां, किनकां...आब रहअ दिय बड नचौलौं... आब बाद मे नाचक कथा हेतैक |

आई अपना सब विदापत-नाच के आगू बढ़ाबय छी |

नाच करअ वाला एकेटा जगह पर जमा भ झूमअ लागल | धिरिनागि तनका, तिटक-तिटक ध, तिटकल मदगिन धा' | ताल समाप्त भेल आ नाचो शेष भ गेल आ नाचअ वाला सब घोघ तानि दर्शक मंडली मे जा बैसल | नाच मे विकटा बनल छल ओ नाच करनिहार के ताकअ लागल | धृगा-धृगा'...

'धिन-तिनक तिनक, धिन तिनक-तिनक'-- मृदंग बाजल

'हे समाजियों के सुर मे सुर मिलौलक |

'हे लेल परवेश परम सुकुमारि

हंस गमन वृषभान दुलारि....'

नचनिया सब उठी विकटा लग आबि गेल आ हर्षित भ विकटा ओय ओय ओय ओय केनाई शुरू क देलक |

'धिन-तिनक तिनक धिन-तिनक तिनक '

'हे ! तन मन बदन पापन सहजोर है दामिनी ऊपर उगलन्हि चाना...'

नाच अजुका बंद करैत छी फेर आनद उठायल जेतै.....



विदापत-नाच के आब आगूक आनंद उठाऊ... आ प्रितिक्रिया कृपया सेहो व्यक्त अवश्य करू .... जय मिथिला, जय मैथिल, जय मैथिलि, जय मिथिलांचल, जय मिथिलापन, जय मैथिलियता........

नाच करअ वाला सब घोघ हटा लेलकि आ चंद्रमुख ( घुटल दाढ़ी, मोंछ आर बेडोल केहने संके मुंह) देख दर्शको सब हँसैत-हँसैत निहाल भ जैत अछि | नचनिया निचाअ दिस ताकि रहल लाज सँ लज्जावती लता सन सिकुडल नाच क रहल छल वा छली | विकटा ओकरा अपना दिस आकर्षित करअ के कोशिश क रहल अछि | ' हे विहसि उठलि पिऊ दखि सुहागिनी लाज बदन लेल फेरि..' नचनिया विहंस क मुंह फेर लेलक | हंसअ काल मे तमाकुल सेवन सँ जे दांत सब कारि भेल छलय से चमकि उठल | कृपया अहाँ सब शांत भ जाऊ | जी, जी हं, विद्यापति के पदावली भ सकैत अछि, परंच इ छे 'विदापत नाच' |...... न्यू थियेटर्स, विद्यापति, कानन बाला. पहाड़ी सान्याल की... बक-बक बंद कराय जाऊ | आखिर अलाप शुरू कए देलौं, 'मोरे अंगना मे आये आली, मै चाल चलूँ मतवाली'.... अहाँ सब के कतेक बुझौ जे इ 'विदापत नाच' छय आ वो नाच करअ वाला टहलू पासवान, ओकर बाप बड़का डकैत छल | बाप के काला पानी के सजा भ गेलै.. माय केकरो आन सने चलि गेलै आ इ बच्चे सँ नाचअ लागल | अपन जवानी के दिन मे एकर धूम मचल रहित छलय... धूम मचबय छलय धूम | एकर आवभाव देखि त परबतिया अपन बसल बसायल गृहस्थी छोडि एकरा सने रातिये राति पड़ा आयल | हं त टहलू पासवान गाबि सकैत अछि जे...

अंगना आएत जब रसिया

पलट चलब हम इषत हंसिया

कान्ह जातां बहु करयिन्ह

लेकिन मोरे अंगना मे आये आली ' से बेचारा की जाने ? धृन्ना धृगा, तिन्ना-तिन्ना -मृदंग आब दोसर ताल बदलि धृन्ना धिग- धृन्ना- धिग- धिरिनंगि- धिरिनंगि- धिरिनंगि- धिरिनंगि...| किन्ना- किन्ना मंजीर सेहो टटल बदलअक |

'सखि हे...

सखि हे, कि पूछसि अनुभव मोहे

जनम अवधि हम रूप निहारलौं,

तबहु न तिरपित भेल |"

आब नाचक दृश्य दोसर सीरीज मे ... जय मिथिलांचल.....


जय मिथिला, जय मैथिलि, जय मैथिल, जय मैथिलियता आ जय मैथिलिपन के हमरा सब के अनुसरण के बीच विदापत-नाच कवि कोकिल विद्यापति के स्मरण मे प्रस्तुत करबाक चाहि....

'अरे ? चुप ! चुप !!'--विकटा खिसिया क चुप करा रहल अछि | एक टा समाजी गमछा के कोड़ा बनेनाइ शुरू केलक | विकटा कहनाय आरम्भ केलक जे ओकरा पीट क अनेरे समय बर्बाद कैल जा रहल अछि | जमींदार के जूता खाइत -खाइत ओकर पीठ के चमरी मोट भ गेल छय | ओ अइ लेल मात्र चुप करा रहल छल.. 'कि जन्म भरि केकर रूप निहारैत रहल'... जखन ओकरा बुझावल गेलय जे ओकरे रूप, त ख़ुशी भ तुरंत पॉकेट सँ एकटा छोटका एना निकालि सगर्व सँ अपन मुंह देखअ लागल |

गीत समाप्त भेल, आब विकटा महादेव के बारी छैन |

'हे नेक जी (नायक जी); |

हूँ |

'आब हमसे सुनू' |

'बाप रे, |

बाप रे कोन दुर्गति नहिं भेल |

सात साल हम सूद चुकाओल,

तबहुं उरनि नहिं भेलौं |

कोल्हुक बरद सब खटलौं

कारज बाढ़त हि गेल |

बारी बेच पटवारी के देलियेंन्ह,

लुटा बेच चौकीदारी | बकरी बेच सिपाही के देलियेंन्ह

'फाटक नाव गिरधारी |' आब आगू वाला सीरीज मे ... जय मिथिलांचल

विदापत-नाच के चारिम सीरीज के आगू बढबैत हम अपना के बड आनंदित अनुभव के रहल छी | हमर अंदाज ठीक अछि से पसंद के क्लिक देखि क बुझ पडैत अछि जे अहुं सब आनंद उठा रहल छी | अस्तु ! नाच शुरू भ गेल अछि किछ बुझलीय अहाँ सब .. अहुं सब पूरा के पूरा फटकनाथ गिरधारी छी | कने दर्शक के देखियोन ने जे ओ सब की बुझलैन जे हँसैत-हँसैत पेट मे दर्द हुअ लगलैन |

'धृगा-धृगा, धिधिना तिन्ना '....

सखी हे !

सखी हे,

इ माह भादर, भरल बादर,

शुन्य मंदिर मोर |...

सुन्दर ! सुन्दर !!ठीके विद्यापति मैथिल कोकिल....

अहाँ सब फेर भसिया लगलौं, अहुं सब विकटा स कम ने छी | कतबो मना कैल जाय ओकरा जकां सब गीत पर किछ ने किछ सुनाबैय लागै छी | इ लिय विकटा महोदय फेर टपकला...

इ माह भादर, बरिसे बादर,

चुअत छप्पर मोर |'

'हहा-हहा ...!!' दर्शक मंडली हँसैत-हँसैत लोट-पोत भ रहल अछि | हँ एक टा बात कह्नाय बिसरि गेलौं जे विकटा अपना के कृष्ण बुझैत अछि आ परदेशी साजन सेहो, लेकिन संगहि इहो बात ने बिसरैत अछि जे कि वो कालरू मुसहर अछि,हलहुलिया के रहनिहार आ मनुष्यों रहैत ओ बुझैत छैक जे कोल्हू के बरद सँ बेसी ओकर हैसियत नए छय | नाचअ वाला सब जखन ओकर गर्दन मे बांहि मान- अभिमान सँ प्रेम के प्रदर्शन करैत बुझबैत छय कि ---माधव तजि के चललौं विदेश |' तखनि ओ बिसरि जैत अछि जे वो कृष्ण अछि आ गोकुल सँ मथुरा जा रहल अछि | ओकरा सामने जीवन के विषमता मूर्त रूप भ नाचि उठैत छय आर वो बुझबैत छैक --'नहिं बरसल अदरा (आद्रा नक्षत्र) नहिं अशरेस,

चारु दिस देखय छी बुढ़िया के केश ....

माछ काछू सब गेल पाताल,

अब की सखि महा अकाल ,

दिन भरि खटि के एक सेर धान,

एकरा से कैसे बचत परान,

छोडि- छोडि सजनि जाइछि विदेश, फेर दोसरे क्षण जखन दर्शक सब गाबअ लागैत छय तेकर दृश्य आगू..............



पैघ के संझुका चरण स्पर्श आ समवयस्क वा कनि-मनि छोट-पैघ के नमस्कार.............. जय मिथिला, जय मैथिलि, जय मैथिल, जय मैथिलियता आ जय मिथिलापन..... विदापत नाच चरम पर पहुँच रहल अछि...सबटा नचनिया इ गीत गेनाय शुरू क देलक.......

'गोद ले बलमा चललि बाजार

हटिया के लोग पूछे, के लागे तोहार |

सासू जी के लड़िका, ननद के जेठ भाय,

पूर्व के लिखल स्वामी छिक हमार !'

आब विकटा बच्चा जकां जिलेबी, बताशा आर खिलौना लेल छिरिया लागल..

अखने एकटा नचनिया गीत गेलक--

'राति जखन भिनसरवा रे ,

पहूं (स्वामी) आयल हमार

कर कौशल कर कपंइत रे

हरवा उर डार

कर पंकज उर थपइत रे

मुखचन्द्र निहार

विकटा बीचे मे रोकि कअ एकटा समाजी सँ एकर अर्थ बुझबई लेल कहैत छैक आ समाजी खुलि क अय गीत पर टीका करअ लागल | केना नायिका पुआल पर अपन झोपड़ी मे सुतल छलय आ विकटा आयल छल...

आब नाचक आ गीतक कथा आगू लिखब आशा अछि जे समापन दिस अग्रसर विदापतक नाच के अहाँ सब पहिने जकां पसिन करब...



विदापत-नाच के आब अंतिम दृश्य---------

चलु दर्शक सब के बीच मे... कारी-कारी मोटगर आ गठ्गर देह वाला नवयौवना मंद-मंद मुसकिके दबा आ एक दोसर के केहुनिया-केहुनिया क कनफुसकी करअ मे आनंदित भ विकटा के दिस एक टक निहार रहल छल | अधेड़ उम्र के मौगी सब बनावटी तामस व्यक्त क युवती सब के रोकय चाहैत छैक लेकिन दबल हंसी आ गुद्गुदायल ह्रदय कखन मानय छय.. एम्हर नचनिया सब आलाप क उठल------

'चलु मन, चलु मन ... ससुरालि

जइबै हो रामा,

कि आहो रामा, नैहरा मे

अगिया लगाइब रे कि...

युवती चंचल भ जाइत छय आ युवक लोकनि के नस मे बिजली दौरअ लगलैन | नाच आब ख़त्म हुअ वाला छैक --

'चलु मन, चलु मन.

धिन.धिनक धिनक, धिन- धिनक धिनक

कि आहो रामा, नैहरा मे अगिया लगाइब रे कि ...!

डिग डिमिक डिमिक, डिम डिमिक डिमिक ...

अरे इ की ? ओहो चेत्हरू गुंसाई जी छथि | गुंसाई जी कबीर के भक्त छथि | दस-पंद्रह साल पहिने जमींदार साहब के कहला पर ओ झूठ गवाही नय देलकय अय पर जमींदार खिसिया क बेघर गुंसाई जी के कअ देल गेलैन आ तखने सँ 'स=स्ट्रीक बैरागी भ गेला | खंजरी, झोरा और चिमटा, जटा और लम्बा दादी... इ लिय गुंसाई जी खंजरी बजा बजा नचनिया संगे नाच करअ लागल...

'डिग डिमिक डिमिक, डिग डिमिक डिमिक

कि आहो रामा. नैहरा मे अगिया..

बात इ छय चेत्हरू गुंसाई जी अय गीत के पूरा निर्गुण मानय छैक |

अहा ! ओकर धसल आंखि मे नोर चमकि उठय छय आ नाच समाप्त भ गेल.... जय मिथिला, जय मैथिलि. जय मैथिल, जय मैथिलियता. जय मिथिलापन...

0 comments:

एक टिप्पणी भेजें