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शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

गली गली हम तकलौ सभठाँ, एतै कतौ दरभंगा छल।

नाली अछि जे नाला छल, बाट ई कहियो करिया छल,
एतिह कतौ पतियानी गाछक, एतहि कतौ गौशाला छल,
महलक खण्डहरपर लहराइत, देशक अपन तिरंगा छल। 
गली गली हम तकलौ सभठाँ, एतै कतौ दरभंगा छल। 

उड़ै छल जहाज एही ठॉ , राखल एतहि सलून रहै,
हवागाड़ीक बाते छोड़ू, रॉयल्सक एतहि जूनून छलै,
कतेको घोड़ा, कतेको हाथी, कतेको एहि ठाम तांगा छल,
गली गली हम तकलो सभठाँ, एतै कतौ दरभंगा छल।

पोलो के र मैदान कतऽ अछि, कतऽ गेल शॉकरक बन्दा,
के खेलए आब क्रिकेट , सभ खेलए गिल्ली डण्डा,
खेल खेलाडी बिसरि गेला सभ, दुनू एही ठॉ उम्दा छल,
गली गली हम तकलौ सभठाँ, एतै कतौ दरभंगा छल। ---कवि भवेश नाथ।

कलकत्ता यूनिवसीर्टी हो वा पीएमसीएच पटना केर,
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय जे मालवीयक सपना छल,
धन सम्पत्ति न्योछावर केलक क्यौ जँ मङने चन्दा छल,
गली गली हम तकलौ सभठाँ, एतै कतौ दरभंगा छल।

बगैचा आ महलकेँ देखू, एक एक कोना उजड़ि गेलै,
इतिहासक एहि पोथी केर, पन्ना पन्ना बिखरि गेलै,
लगलै ककरा हाथ ई मोती, जानि केहन ओ बन्दा छल,
गली गली हम तकलौ सभठाँ, एतै कतौ दरभंगा छल।

फेरो निकलत नबका कोपड़, बाग बनत हरियर-आ धवल
हाथ मिला कऽ, नव उत्साहसँ लिखि देबै इतिहास नवल
बनत तीर्थ ई दुनिञा भरिके ँ, घाट जेहन ओ गंगा छल
गली गली हम तकलौ सभठाँ, एतै कतौ दरभंगा छल। ---कवि भारतेंदु दास।

अनुवादक: रोशन कुमार मैथिल
नोट: कवि भवेश नाथ आ भारतेन्दु दासक हिन्दी रचनाक अनुवाद कयल गेल अछि।

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