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रविवार, 2 फ़रवरी 2014

...आ पद्मश्री घुरा देने रहथि फणीश्वर नाथ रेणु

...आ पद्मश्री घुरा देने रहथि फणीश्वर नाथ रेणु

  जयप्रकाश नारायणक माथपर 4 नवम्बर 1974 के ँ पटनामे एक निर्दय अर्द्धसैनिक बल दमगर लाठी चला देने छल। जँ संग चलि रहल नानाजी देशमुख ओहि लाठीकेँ अपना बाँहिपर रोकि नञि नेने रहितथि तँ अनर्थ भऽ सकै  छल।
जेपीक नेतृत्वमे चलि रहल ऐतिहासिक बिहार आन्दोलनक क्रममे भेल एहि घटनाक विरोधमे बेसी जनाक्रोश छल। एकरा विरोधमे साहित्यकार फणीश्वर नाथ रेणु पद्मश्री घुरा देने छला।
आजुक भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलनमे साहित्यकार लोकनिक लगभग अनुपस्थितिक पृष्ठभूमिमे नागार्जुन -रेणुक जेपी आन्दोलनमे तखुनका मजगूत उपस्थिति मोन पड़ैत अछि।
रेणुकेँ 1970 मे पद्मश्री भेटल छल। नागार्जुन आ रेणुकेँ 1972 मे बिहारक तत्कालीन राज्यपाल देवकान्त बरुआ तीन सय टाकाक आजीवन मासिक वृत्ति देब आरम्भ क रौने छला। एहि लाठीचार्जक विरुद्ध रेणु आ नागार्जुन ओकरो भविष्यमे नञि लेबाक निर्णय केने छला। जेपी केर उपस्थितिमे सभा मञ्चपर जखन एकर घोषणा भेल तँ जेपीक आँखि नोरा गेल छल। मोन राखी जे रेणु आ नागार्जुन जेपी आन्दोलनमे सम्मिलित ओहि साहित्यकार लोकनिमेसँ छला जे जहल सेहो गेल छला। जहल यात्रासँ घुरबाक बाद फणीश्वर नाथ रेणुसँ साप्ताहिक प्रतिपक्षक संवाददाताक रूपमे एहि पंक्तिक लेखक गपशप केने छला।
रेणु पटनाक राजेन्द्र नगरमे रहै छला। हुनकासँ गप करब एक गोट फराक अनुभव होइत छल। ओना तँ ओ सदिखन पटनाक कॉफी हाउसमे बैसै छला।
कॉफी हाउसमे हुनक रेणु कॉर्नर छल। ओहि कोनमे ओ अपन साहित्यकार आ पत्रकार मित्रक संग बैसल करै छला। राजेन्द्र नगरक एक गोट फ्लैटमे ओ अपन पत्नी लतिका रेणुक संग रहै छला।
सुरेन्द्र किशोर तहिया ओहि फ्लैटमे आसान आ आडम्बरहीन वातावरणमे हुनकासँ गप केने रहथि।
ओ एक गोट पैघ साहित्यकार छला। साप्ताहिक प्रतिपक्ष लेल ओ समय निकाललनि। ओ ई अवश्य कहने छला जे गपशप छपबा लेल पठेबासँ पहिने ओ हुनकासँ देखा लेथि। सुरेन्द्र किशोर ई सावधानी केलनि। ओ पाण्डुलिपिमे अपन कलमसँ किछु परिवर्तन केलनि। हुनका ओहिना मोन छनि जे कोन तरहेँ फर्शपर ओछाओल गेल पटियापर बैसि चाह पीबैत-पियाबैत पाण्डुलिपिकेँ सुधारि रहल छला।
भेट वार्ता छपबाक बाद रेणु सन्तुष्ट छला। कवि कमलेशक सम्पादकत्वमे प्रकाशित प्रतिपक्ष एक चर्चित हिन्दी साप्ताहिक पत्रिका छल। ओना जार्ज फर्नांडिस ओहि पत्रिकाक प्रधान सम्पादक आ सञ्चालक छला, मुदा ओहिमे गिरधर राठी, मंगलेश डबराल, रमेश थानवी आ एनके सिंह सन पत्रकार सेहो काज करै छला। हुनका लोकनिकेँ लिखबाक छूट छल।
राजनीतिक हलचलसँ भरल एक विशेष राजनीतिक परिस्थितिमे लगभग 39 बरख पहिने रेणुसँ ई गपशप कयल गेल छल। गपशप प्रतिपक्षक 10 नवम्बर 1974 केर अंकमे छपल। ओकरा आइयो पढ़ब रचिगर आ प्रासंगिक लागत। ई गपशप एहि ठाम पुन: प्रकाशित कयल जा रहल अछि। फणीश्वर नाथ रेणुसँ सुरेन्द्र किशोरक गपशप केर हिन्दीसँ मैथिली अनुवाद प्रस्तुत कऽ रहल छथि रोशन कुमार मैथिल-

प्रश्न - सरकारी दमन आ हिंसाक अतिरिक्त ओ कोन बात छल जे अहाँकेँ एहि आन्दोलनमे सक्रिय हेबाक प्रेरणा देलक?
फणीश्वर नाथ रेणु- हिंसा आ दमन तँ 18 मार्च 1974 केर बाद प्रारम्भ भेल अछि, मुदा हम तँ बहुत दिनसँ औना रहल छलौँ। भ्रष्टाचार जाहि तरहे व्यक्ति आ समाजक एक-एक अंगमे घून जकाँ लागि गेल अछि, ओहिसँ सभ किछु बिनु मतलबक भऽ चुकल अछि। हम किनका लेल लिखताँै ! जकर दम घुटि रहल हो, ओ लिखि कोना सकैत अछि? हमरा लोकनि एक दमघोँटू कोठलीमे बन्न छलौँ। जँ एहि आन्दोलनक रूपमे स्वच्छ हवा लेल एक खिड़की नञि खूजल रहितै तँ हम स्वयं आत्महत्या कऽ लितौँ। ई आन्दोलन तँ जीबाक चेष्टा अछि।

प्रश्न - देशक साहित्यकार लोकनिसँ, बिहारक आन्दोलनक सन्दर्भमे अपनेक की अपेक्षा अछि?
रेणु - कोनो तरहक अपेक्षा,नञि अछि। अपेक्षाक भरोसे तँ देश चैपट भऽ रहल अछि। हमरासँ माने एक इकाइसँ जे अपेक्षा छल, से हम कऽ रहल छी।

प्रश्न - अखिल भारतीय लोकतांत्रिक रचनाकार मञ्चक स्थापनाक आवश्यकता कियैक भेल?
रेणु - मञ्च, संघ आ गोष्ठी आदि शब्दसँ हमरा घृणा भऽ गेल अछि। हमरा मसाला युक्त पुलावक गन्ध नीक लगैत अछि। ओना अपचक स्थितिमे सुगन्ध वमन करबा दैत अछि। ओना अखिल भारतीय रचनाकार मञ्चक सूत्रधार नागार्जुन केर सक्रिय होयब अत्यन्त प्रेरणादायक अछि। अत: हम एहि सन्दर्भमे हुनकासँ गपशप कऽ रहल छी।

प्रश्न- की अपनेक भीतरक साहित्यिक रचनाकार आ परिवर्तनक आग्रही राजनेता कोनो द्वंद्व अनुभव करै छथि?
रेणु - राजनीतिक नेता हम तँ छी नञि, मुदा जाहि दिन ई साहित्यकार अपन भीतर द्वंद्व अनुभव नञि करता, ओ रचनाकार नञि रहि जेता।

प्रश्न - की राजनीतिमे साहित्यकारक ओहिने भूमिका होयत, जेहन सामान्य राजनीतिक कार्यकर्त्ता लोकनिक होइत अछि?
रेणु - साहित्यकार सेहो जन होइत छथि आ ओहो राजनीतिसँ उत्पन्न समस्यासँ अपना तरहे जूझै छथि। अहाँकेँ मोन होयत बिहारमे 1967 मे जखन भयंकर अकाल पड़ल छल तँ पहिने हम आ अज्ञेय जी अकालग्रस्त क्षेत्रक यात्रा केने छलौँ। ओकर रिपोट दिनमानमे छपल छल।
ओहि यात्राक क्रममे हमरा लोकनि अकालक विभीषिका देखाबऽ वला अनेक चित्र नेने रही, जाहिसँ सरकारकेँ आपत्ति भऽ सकै छल। संगे हमरा लोकनिकेँ ओ गिरफ्तार सेहो कऽ सकै छल मुदा, ओ काज ओ तहिया नञि केलक। 9 अगस्त , 1974 के ँ फारबिसगञ्ज (पूर्णिञा) मे हम सभ बाढ़पीड़ितक राहति लेल प्रदर्शन केने छलौँ।
साहित्यकार लोकनिक भूमिकाक सम्बन्धमे एक बात आओर कहि दी। 1967 मे रौदी ग्रस्त क्षेत्रक चित्रक कनाट प्लेसमे प्रदर्शनी लगाओल गेल छल आ ओहिसँ प्राप्त टाका रौदी ग्रस्त पीड़ितक मदति लेल पठा देल गेल छल।

प्रश्न - अपने 1972 मे काँग्रेसक विरुद्ध विधानसभाक चुनाव लड़ने रही आ आइ एहि आन्दोलनमे सेहो योगदान कऽ रहल छी। की एहि दुनूमे कोनो तरहक सम्बन्ध अछि?
रेणु- 1970 केर दिसम्बरक अन्तिम सप्ताहमे अखिल भारतीय लेखक सम्मेलन भेल छल। सम्मेलनक एक मास पूर्व हमरा मुसहरी (मुजफ्फरपुर) सँ जयप्रकाश नारायणक पत्र भेटल छल। ओ हमरा माध्यमे देशक प्रत्येक लेखकसँ भूखल आ बीमार जनतासँ जुड़बाक आग्रह करैत लिखने छला जे मैला आँचल आइयो मैल अछि अपितु आओर मैल भऽ गेल अछि।
हम ओहि दु:ख भरल चिट्ठीकेँ ओहि सम्मेलनमे पढ़ि कऽ सुना देने छलौँ, मुदा नन्द चतुवेर्दी ठीक लिखलनि (दिनमान: मत सम्मत : 22 सितम्बर 1974)  अछि जे बहुत रास बहसबाजी होइत रहल, सामान्य जन, मामूली आदमी, क्रान्ति,  प्रतिबद्धता आ लेखक लोकनिक भूमिका सन प्रतापी विषयपर, ने रेणुक उल्लेख भेल ने जयप्रकाशक आ ने गामक थाकल-हारल जनताक।
एकरा बादे चुनाव आयल। मैला आँचल आ परती परिकथाक बाद एक एहन रचनाक आवश्यकता छल जे आजुक परिस्थिति -दु:स्थितिकेँ अपनामे समेटि सकय, आओर तखने ओहि श्रृंखलामे हमर तेसर रचना पूर्ण होइतै। ओना हमरा लागि रहल छल जे कतौ हम अटकि गेल छी। एकरा संगे चुनाव दंगलमे उतरबाक पूर्व हमरा सोझा कतेको अन्य प्रश्नक संग -संग बुलेट वा बैलेट (?) केर सेहो प्रश्न छल। कारण पछिला बीस बरखमे चुनावक ढंग तँ बदलल अछि, मुदा ओहिमे बुराइ  बढ़ैत गेल अछि। माने टाका लाठी आ जाति तंत्रक चलती भऽ गेल अछि।
अत: हम तय केने छलौँ जे हम स्वयं पहिरि कऽ देखी जे जूता कतऽ कटैत अछि। किछु पाठ अवश्य खर्च भेल, मुदा बहुत रास कटु-मधुर आ सत्य अनुभव भेल। ओना भविष्यमे हम कोनो चुनाव नञि लड़ऽ जा रहल छी। जनता हमरा कोनो सांसद वा विधायकसँ कम स्नेह आ सम्मान नञि देलक अछि। आइयो पञ्जाब आ आन्ध्रक सुदूर गामसँ जखन हमरा चिट्ठी भेटैत अछि तँ बहुत सन्तोष होइत अछि। एक बात आओर कहि दी ,1972 केर चुनाव हम मात्र काँग्रेसक विरुद्ध नञि, अपितु सभ राजनीतिक दलक विरुद्ध लड़ने छलौँ। (स्मरण रहय जे फारबिसगञ्ज विधानसभा चुनाव क्षेत्रमे निर्दलीय उम्मीदवार रेणुकेँ 6,498 मत भेटल छल। काँग्रेसक विजयी उम्मीदवार सरयू मिश्रकेँ 29,750 आ समाजवादी पार्टीक लखनलाल कपूरकेँ16, 666 भोट भेटल छल।)

प्रश्न - (जेपी) आन्दोलनक भविष्यक सम्बन्धमे अपने की सोचै छी?
रेणु - चारि नवम्बर आओर ओकरा बाद की होइत अछि, हम जीवित बचब वा नञि, एहिमे सेहो हमरा सन्देह भऽ रहल अछि। बरख 1942 सँ चौगुन बेर नरसंहार तँ भऽ चुकल अछि। आब तँ सत्ताधारी जमातिक व्यवहार देखि कऽ यैह बुझाइत अछि जे बांग्लादेशमे पाकिस्तानी नरसंहारक तरहे एक दिन नागार्जुन, रेणु, लाल धुआं, बाबूलाल मधुकर आ अनेक बुद्धिजीवी लोकनिक लहास एक ठाम पाओल जायत!
सीपीआइ केर एक गोट छौँड़ा आयत आ जयप्रकाशक कारकेँ बमसँ उड़ा देत! आरो बहुत किछु भऽ सकैत अछि, मुदा सत्ताधारी वर्ग ई नीक तरहँे जानि लेथि जे जयप्रकाश नारायणक गिरफ्तारी -जकर जोरसँ चर्चा अछि-केर बाद ओ स्थिति होयत जे गान्धी जीक गिरफ्तारीपर 1942 मे सेहो नञि भेल छल।

(रेणुक आशंका एक हद धरि सत्य साबित भेल। 4 नवम्बर,1974 के ँ पटनामे जयप्रकाश नारायणक नेतृत्वमे निकलल जुलूसपर अर्द्धसैनिक बल लाठी चलेलक। स्मरण रहए जे लाठी स्वयं जेपीकेँ निशाना बना कऽ सेहो चलाओल गेल। )

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