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गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

GAAM KER YAAD AAYAL


आयी फेर याद आयल, किएक मिथिला देश कें

छोरी देने छी जहन, हम सब अप्पन खेत कें

आयी फेर याद .......................................

माय के कोना बिसरलौं , की भेले इ की कहू

चली परल छी लय पिपासा, छोरी अप्पन भेष कें

भाई छुटल , मित्र छुटल, छुटि गेल सब याद सब

हम तरपी क रही गेलौं, बस हाथ धेने केस कें

आयी फेर याद आयल ...............................

नया जमाना आबी गेलय, पाई टा भगवन छई

जाकरा देखू एके रस्ता , पायी के इन्सान छई

सखी छुटल मीत छुटल, रुसी गेल सबटा कोना

आब त बिसरी रहल छी, नेंपन के खेल कें

आयी.....................................................

गाम पर पीपर तर में , खेलाइत रहिये कोना कहू

रोज एतय परदेश में छी , दिन खुजिते रोज बहु

मोन कनाल अंखि कनाल, देखि के कोना सहू

सोचिते सबटा मिटा मितायल, सपना अपने देखि कें

आयी .................................................

संस्कार सेहो बिसरलौं , चललौं पश्चिम के बाट पर

मिथिला बस कल्पैत रहली, उएह टूटलहिया खाट पर

अंत में मिथिले टा पूछती , राखू नै एकरा ताख पर

सुनु आनंद के बात मिता, घर नै बनाबू बालू आ रेत कें

आयी फेरो ...........................................आनंद

रचनाकार

आनंद झा 'परदेशी'


(रचनाकार आनंद झा एकरा कतौ हमरा स बिना पूछने नै उपयोग करी )
http://anandjhakavitakahani.blogspot.com/

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