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बुधवार, 7 मार्च 2012

गजल



मिथिलाक गाम घर :
हजल

"यदि बैसब कोठली मे लागत बेशी रंग यै
तोड़ी क केबार मोबिल लगा करब तंग यै

बनरी सन मुंह बना देब अहाँक भौजी यै
कारिका कादो लगा देब मोन हेएत चंग यै

बहिन कए कते देर नुका क रखबै यै अहाँ
बड़का शिकारी जेकाँ हमहूँ धेने छी ढंग यै

दौड़ा -दौड़ा क खत्ता में पटैक क राँगब हम
प्रेम सँ खा लिअ एकटा मिठका पड़ा भंग यै

लगबा लिअ दुनू गाल पर अबीर आ रंग
डूबि जाऊ भौजी अहाँ मस्ती में ''अमित'' संग यै ...||

अमित मिश्र  

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