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गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

मैथिली रंगमञ्चक समकालीन यथार्थ

प्रकाश झा

किछु दिन पहिने एक संग दू टा पत्रिका  पढ़बाक मौका भेटल। दुनू पत्रिका मैथिली रंगमञ्चपर केन्द्रित। मुदा, पत्रिका पढ़लाक बाद मोन विचलित भेल। पत्रिका तँ आजुक समयक अछि। एकर पाठक सेहो आजुक समयक अछि। कोनो पत्रिकाक मूल तँ आजुक समय आ दृष्टिक प्रस्तुतिकर्त्ता होइत अछि मुदा एहि दुनू पत्रिकामे छपल आलेख निराधार आ समकालीन स्थितिसँ कोनो सम्बन्ध नञि रखैत अछि। पत्रिका भनहि अपना गर्भमे रंगमञ्चकेँ रखने होइक मुदा एकर प्रकाशित रूप रंगमञ्चक घोर विरोधी अछि।
पत्रिकामे जतेक आलेख रंगमञ्चक अछि। अधिकांश नकारात्मक सोचकेँ  आगू बढ़बैत छैक। सभ आलेखक शीर्षक  ऊर्जाहीन अछि। रंगमञ्चक सम्बन्धमे किनको प्रतिबद्धताक अभाव देखाइत छनि तँ कियो भित्ति देखै छथि। किनक ो मैथिली रंगमञ्चक चिन्ता देखाइत छनि तँ किनक ो एहिमे आधुनिकता नै देखाइ छनि। कियो भोतहा डॉक्टर बनि मैथिली रंगमञ्चक उनटा साँस गनै छथि तँ कियो महिलाक स्थितिपर अपन तापमान बढ़ा रहल छथि। रंगकर्मीकेँ  आइ आर्थिक स्वतंत्रता भेटि रहल छै तँ हिनका लोकनिकेँ  अपन अर्थपर संकट देखार भऽ रहल छनि। अहाँ अपना कर्मसँ पाइ कमाउ से नीक रंगकर्मी अपना कर्मसँ पाइ कमेताह तँ प्रश्नवाचक निशान। ई छनि तथाकथित समालोचकक समकालीन दृष्टि जिनका कान्हपर समाजक प्रशस्तिकरणक जिम्मेदारी छनि।
एहिसँ ठीक विपरीत अछि आजुक मैथिली रंगमञ्च युवा रंगकर्मी अपन प्रतिबद्धतासँ सराबोर छथि। एहन उदाहरण एक नै, सैकड़ोमे अछि। रंगमञ्चकेँ भित्ति देखेनिहारकेँ अपन नव-नव प्रयोग देखा रहल छथि मैथिली रंगकर्मी। चिन्ता आरो दुखित करैत होनि मुदा अखुनका मैथिली रंगमञ्च आब अपन समृद्धिक उदाहरण बनि रहल अछि, दोसर विधाक लेल मैथिली रंगमञ्चक पटाक्षेप कएनिहार लोकनि प्रेक्षागृह दिस समयपर आबथु आ मैथिली रंगमञ्चक उषाकालकेँ देखथु। मैथिली रंगमञ्चक  समस्याक चिन्ता कयनिहार महानुभावकेँ बूझक चाही जे आजुक मैथिली रंगमञ्च हुनक  पारिवारक, सामाजिक चिन्ताकेँ मंचपर नियमित प्रेषित कऽ रहल अछि।
ई हमरा घोर आश्चर्य लगैत अछि जे हम सभ एना व्यक्तिवादिता दिस किएक बढ़ि रहल छी? रंगमञ्च तँ अछिए समूहक कार्य। एहिमे सामूहिकता अछि। ई कखनो व्यक्तिवादितासँ ग्रसित नै भऽ सकैत अछि। व्यक्तिवादी रचनाशील व्यक्ति कहियो रंगमञ्चकेँ नीक दृष्टिसँ नै देखलक अछि। उदाहरणस्वरूप हम अपन अनुभव कहै छी। हमरा कतेको फोन अबैत अछि ‘हम फल्लाँ बाबू बजै छी, अहाँ सभक कार्यक जानकारी भेटैत रहैत अछि। अहाँ लोकनि नीक जेना लागल छी। ई कहू जे एखन कोन-कोन नाटक सभ नव आयल अछि? वा कि किछु मैथिलानीक नाम कहू जे एखन नाटक कऽ रहली अछि? वा कि एहि साल कोन-कोन नव नाटक भेल अछि?’ आदि-आदि। कारण पुछलाक बाद ज्ञात होइत अछि जे एहि विद्वानकेँ   मैथिली रंगमञ्च विषयपर होइ बला कोनो सेमिनारमे आलेख पढ़बाक छनि। किनक ो नाटकपर पुस्तक छपि रहल छनि ताहिमे आलेख पठेबाक छनि आ नञि तँ कोनो पत्रिकाक  कोनो कोनमे रंगमञ्चपर चारि पाँती  लिखबाक छनि। हमर नाम हुअए, हमरा किछु  अर्थलाभ हुअए, हमरा रंगमञ्चक अनुभव अछि, एही बहन्ने कतौ यात्राक मौका भेटि जाए, आदि-आदि। व्यक्तिगत सोच चाहे जे हो, हम एहि विधाकेँ  जनैत छी वा नै। एहन सोच किएक बढ़ि रहल अछि उपर्युक्त विद्वतगणमे? बुझलौँ जे अपने महान कवि छी, महान सम्पादक छी,महान कथाकार-निबंधकार छी तकर माने ई तँ नै जे अपने आनो विधापर अपन सिद्धहस्तता स्थापित करबे करी।
हाँ,किछु व्यक्ति छथि जिनका बहुमुखी प्रतिभा छनि तँ ओ हुनक र लेखनीमे से देखार होइ छनि। ओ लोकिन एना निराशावादी आ आरोप-प्रत्यारोपमे अपन ऊर्जा नै प्रवाहित करै छथि। किछु लेखक कने बुधियार,अपन आलेखमे किछु संस्थानक नामो लिखै छथि मुदा सभ नाम गलती छनि। हिन्दीमे कहाबी छै ‘‘अकल बढ़ाने के लिए नकल की आवश्यकता होती है, नकल करने मे भूल हुइ तो सकल बिगड़ जाती है।’’ सैह स्थिति आलेख पढ़ला बाद होइत अछि। अपना जीवनमे कहियो रंगमंचक सम्पर्कमे अयलाह। पाछूसँ  हुथकेलापर अपन पाट कोहुना केलनि आ आब ओकरे स्वर्णयुग मानि आजुक रंगमञ्चक स्थितिपर विचारो देबाक लेल सभसँ आगू बैसताह। एहन प्रवृत्तिपर रोक लागक चाही।
जे तथाकथित विद्वतजन लोकनि आजुक समयमे स्वयं नाटके केँ आधुनिक नञि मानै छथि, वैह लोकनि साहित्य अकादेमीक सेमिनारमे मैथिली नाटकक आधुनिकतापर अपन आलेख पढ़ै छथि। आब एहना स्थितिमे नाट्य विधासँ जुड़ल रंगकर्मी लोकनि हिनक एहन प्रदूषित आलेखक पन्नाकेँ  रद्दीमे बेचताह ताहिमे ककर गलती?
आजुक समयमे एहन आलेख किएक लिखल जा रहल अछि तकरो  किछु जबरदस्त कारण छैक। पहिने कोनो गामक युवा लोकनि वा शहरक युवा पूजा पाबनिमे अपन आ किछु तथाकथित गणमान्य लोकनिक मोनक रंजन करबाक लेल नाटक कऽ लै छला। फेर साल भरि अपन आन-आन काज-धंधा देखै छला। नाटक देखबाक लेल बेर-बेर अनुनय-विनय करै छला। आब एकर ठीक उनटा स्थिति भऽ रहल अछि। आजुक युवा एहि क्षेत्रमे अपन करियर बना रहल छथि। तेँ ओ समुचित प्रशिक्षण लऽ रहला अछि। खुशामद कऽ कऽ अपन नाटक देखबा लेल सादर आमंत्रण देताह ताहिसँ जरूरी होइत अछि एहि विधाक विशेषज्ञकेँ  किएक नहि देखेता जाहिसँ हिनक प्रशिक्षणक उचित प्रतिफल भेटत। एहना स्थितिमे लिक्खाड़ लोकनि तँ तामसमे एहिना एहि भंग विधाक अर्थी निकालताह।
हमरोसँ प्रश्न कयल जा सकै त अछि जे मैथिली रंगमञ्च पहिनेसँ समृद्ध भेल अछि तकर की प्रमाण? आजुक मैथिली युवा लोकनि एहि क्षेत्रमे नीक जेना स्थापित भेला अछि। हमरा लग एहन युवाक संख्या पचाससँ बेसी अछि। एहि विधामे प्रशिक्षण देनिहार लगभग सभ संस्थानमे एकसँ  दूटा मैथिली भाषी प्रशिक्षण लऽ रहला अछि। अर्थ ई जे लगभग पचास युवा एहि विधाक प्रशिक्षु छथि। लगभग नौटा युवा एखन भारत सरकारसँ  एहि विधामे छात्रवृत्ति प्राप्त कऽ रहल छथि। पाँच विश्वविद्यालयमे मैथिली रंगमञ्चकेँ विषयक केन्द्रमे राखि कऽ पीएचडी शोघ कार्य चलि रहल अछि एहना स्थितिमे मैथिली रंगमञ्चकेँ समृद्ध नै मानल जयबाक चाही?
नकारात्मक प्रवृत्तिक व्यक्तिक कथन हेतनि जे बेसी नाटक मञ्चपर किएक नै देखाइत अछि? श्रीमान! नाटक मञ्चन देखलाक बाद यैह लोकनि बेचारे अभिनेता लोकनिकेँ दसटा नसीहत ठोकि दै छलाह। जखन कोनो गप होयत कि अपने गप्प करऽ लगै छल। कतेको बेर आग्रह केलाक बाद ई लोकनि प्रेक्षागृह तक टघरैत छला। प्रस्तुतिक बाद बेचारे रंंगकर्मी हिनका लोकनि सँ आशीर्वचन एक्के   ब्रह्मवाक्य ‘हम जे ई नाटक केने रही तँ एहन महान काज भेल रहै,तूँ सभ हड़बड़ीमे कऽ लैत छह, आरो मेहनति करऽ।’ बेचारे  रंगकर्मी मुँह उटकौने स्वस्थानम् गच्छ। जखन कि सत्य रहैत अछि एकर ठीक उनटा। परिणाम भेल जे धीरे-धीरे रंगकर्मी लोकनि हिनका लोकनिकेँ आग्रह-पाती छोड़ि देलनि। एकर अर्थ ई लगाओल जा रहल अछि जे नाटक होइते नै छै। किएक तँ नाटक शुरू होइ सँ पहिने आब दीप नै जरै छै, भाषणबाजी नै होइ छै, अनाप-सनाप विचार गोष्ठी नै राखल जाइ छै। जे आम प्रेक्षक छथि ओ लोकनि खूब नीक जेना नाटक ग्रहण करै छथि आ हॉल भरल रहैत अछि।
ई तथ्य हम आजुक कतेको  संस्थानक प्रमुख लोकनि आ रंगकर्मीसँ गप केलाक बाद लिखि रहल छी।
मैथिली रंगमञ्च मैथिलीक कोनो आन विधासँ  बेसी मजगूत भेल अछि, एकरा सहर्ष स्वीाकार करक चाही। एहि विधासँ जुड़ल व्यक्ति मानसिक आ आर्थिक दुनू रूपे अत्यधिक समृद्ध भेल अछि। आम मैथिलजनमे कोनो विधासँ बेसी लोकप्रिय भेला अछि, मैथिली रंगकर्मी। मैथिली रंगमञ्च मिथिलाक संस्कृति आ साहित्य दुनूकेँ आगू अनबामे अग्रणी काज कऽ रहल अछि। आग्रह जे मैथिली रंगमञ्चक समृद्धिकेँ  अकानू। मैथिली रंगमञ्चक लेल अहाँक लेखनी आ तर्कमे विहंगम दृष्टि रखबाक प्रयोजन अछि।
(लेखक मैथिलीक पहिल रेपर्टरीक संस्थापक छथि। )

1 comments:

  1. आलेख लेल बहुत बहुत धन्यवाद। सत्यमे अपने मैथिलीक प्रत्येक विधा मे देखि सकैत छी जे नकारात्मक आलोचनाक प्रश्रय भेल छैक। ओकर एक मात्र कारण अछि पूर्व सं आबि रहल प्रशंसा युक्त आलोचना गढ़बाक प्रवृत्ति।

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