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बुधवार, 4 दिसंबर 2013

कथा....भैरवी

कथा....भैरवी

विवाहक पाँचम बरखक बाद अनायास भैरवीसँ चन्द्रेश्वर बाबाक मन्दिरमे भेट भेल छल। नरक निवारण चर्तुदशीक व्रत केने रही। मायक जिदपर आयल रही पूजा करऽ।  मन्दिरमे प्रवेश करिते रही कि हमर ध्यान भैरवीपर गेल। लाल रंगक नूआमे ओ बड़ सुन्नरि लागि रहल छली। मन्दिरसँ बाहर एबाक बाद दुनू गोटे एक दोसरसँ कु शल क्षेम पुछलहुँ। किछु काल धरि एमहर-ओमहरक बात करबाक बाद हम भैरवीसँ ओकर पतिक सन्दर्भमे पुछलहुँ। लज्जा वश ओ बेचारी किछु नञि बजली। किछु क्षण चुप रहबाक बाद ओ हमरासँ प्रश्न केने छली- हमर तँ सभ किछु ओहने अछि जेहन पहिने छल, अपन कहू की सभ भऽ रहल अछि आइ-काल्हि?
हमरा लोकनि गप करिते रही कि गाम वाली भौजी हमरा दुनूकेँ एकान्तमे ठाढ़ भऽ बात करैत देखि लग आबि गेली आ चुटकी लैत कहलनि- की यौ, अहाँ दुनू गोटेकेँ लाजो धाख नञि होइत अछि जे एना रास रचा रहल छी?
हुनकर रास रचेबाक बात छूलक, मुदा ओकरा टारैत कहने रहियनि- लाज कथीक होयत भौजी? जँ हमरा लोकनि किछु अनर्गल करब तखन ने, बात करबापर सेहो रोक छै की?
- नञि-नञि एहन कोनो बात नञि, हम तँ बस एहिना किछु कहि दैलहुँ। कतेक नीक रहैत जँ अहाँ दुनूक विवाह.....।
भौजी ई कहि चुप भऽ गेली। हम देखलहुँ जे भैरवी असहज अनुभव कऽ रहल अछि। ते ँ बात बदलबा लेल हम आन गप आरम्भ कऽ देलहुँ। 
- भौजी आब एहि ठामक मेलामे पहिने वला बात नञि रहलै, नञि?
‘से तँ ठीके कहि रहल छी अहाँ’- हमरा बातपर ओ दुनू गोटे सहमति व्यक्त केलनि। 
गाम एबाक बाद हम अपना मायसँ भैरवीक सन्दर्भमे बात के लहुँ। हुनकर जवाब सुनि हमरा बड़ बेसी आश्चर्य भेल जे एकैसम शताब्दीक कोनो युवक अपन पत्नीक संग एना कोना कऽ सकैत अछि। 
भौरवी सन सुन्नरि गाम भरिमे क्यौ नञि छल। गामक सभ युवक ओकरा आँगा-पाछाँ मड़राइत रहै छल, मुदा ओ ककरो भाव नञि दै छली। एक टोल हेबाक कारणे ँ कखनो काल ओकरासँ भेट भऽ जाइ छल। एहि क्रममे कहियो काल गप-शप सेहो भऽ जाइ छल। तरे तर हम ओकरासँ प्रेम करऽ लागल रही, मुदा समाजक डर, घरक लोक-वेदक प्रतिष्ठाक कारणे ँ कहियो ई बात अपन परिवार आ भैरवीसँ नञि कहि सकलहुँ। नञि जानि भैरवी हमरासँ प्रेम करै छली वा नञि। ओना एक गोट बात तँ सोलह आना सत्त छल। आन युवक केर तुलनामे ओ हमरासँ बेसी गप करै छली। एहि कारणे ँ गाम वाली भौजी हमरा भैरवीक नाम लऽ कहियो काल किचकिचा दैत छली। एक दिन नञि जानि गाम वाली भौजीकेँ की फुरेलनि, ओ अपना आङन बजा हमरासँ कहलनि- ‘बौआ एगो बात पूछू? सत्त सत्त कहब ने?’ 
- की भेल भौजी? पहिने ई तँ कहू जे बात की अछि?
- नञि पहिने अहाँ हमर सप्पत खाउ, जे अहाँ हमरासँ लाथ नञि करब।
कनी काल सोचबाक बाद हम भौजीक माथपर हाथ दऽ सपत्त लेलहुँ जे हम हुनकासँ किछु नञि नुकायब। आ पुछलिनि- ‘आब तँ कहू, हम सपत्त सेहो खा लेलहुँ अछि।’
-की अहाँ भैरवीसँ मने मन प्रेम करै छी?
भौजीसँ एहि तरहक प्रश्न पूछल जेबाक हमरा कनिको आभास नञि छल। हम किछु जवाब नञि दऽ सकलहुँ आ चुपचाप ओहि ठाम बैसल रहलहुँ। हमरा चुप देखि गाम वाली भौजी बजली- ‘देखू अहाँ हमरा माथपर हाथ दऽ सपत्त खेलहँु अछि। जँ आब अहाँ फूसि गप बजलहुँ तँ हमर मरल मुँह देखब। 
- नञि भौजी एहन बात जुनि बाजू।
- तखन सत्त सत्त कहू। अहाँ भैरवीसँ प्रेम करै छी वा नञि?
- भौजी भैरवीसँ हम एतेक प्रेम करै छी जे ओकरा बिनु रहब हमरा लेल सम्भव नञि अछि। जाहि दिन ओकरासँ गप नञि होइछ तहिया भोजन करब धरि नञि सोहाइत अछि। 
- तखन ई बात अहाँ भैरवीसँकिए नञि कहै छी?
- डेराइ छी भौजी, जँ ओ हमरा प्रेमकेँ स्वीकार नञि केलक तखन हम कोना जीयब? एखन कमसँ कम एहि विश्वासक संग जीबि तँ रहल छी जे की पता ओहो हमरासँ प्रेम करैत होय। 
गाम वाली भौजी आ हम एहि सन्दर्भमे गप करिते रही आ कि भौजीक घरसँ भैरवी बाहर एली। हम हड़बड़ा गेलहुँ। अकबका कऽ भौजी दिस तकलहुँ। ओ मन्द-मन्द मुस्किया रहल छली। बुझबामे बेसी भाङठ नञि भेल जे गाम वाली भौजी आइ हमरासँ भैरवीक सन्दर्भमे एना खोधि-खोधि कऽ किए पूछि रहल छली।  
हम चट ओहि ठामसँ उठि आङनसँ बहराय लगलहुँ। भैरवी पाछाँसँ हमर हाथ पकड़ि लेलनि। हम थकमका गेलहुँ। ओ कहलनि- ‘अहाँ हमरासँ एतेक प्रेम करै छी जे हमरा बिनु अहाँ जी नञि सकै छी। तखन आइ धरि ई बात हमरासँ किए नञि कहलहुँ?’
- डर होइ छल।
- ककरासँ, की एहि समाजसँ?
- नञि अहाँसँ।
- कथीक डर?
- अहाँ हमर प्रस्ताव स्वीकार करब वा नञि एहि बातसँ डेरायल छलहुँ। 
- जँ यैह प्रस्ताव हम अहाँक सोझाँमे राखी तँ अहाँ की करब?
- हम सहर्ष स्वीकार कऽ लेब। 
ई कहि हम भैरवीकेँ अपना हृदयमे साटि लेलहुँ। भैरवीक आँखिसँ दहो-बहो नोरक धार बहराय लागल। नोर पोछि हम हुनका कनबासँ चुप करेलहुँ। गाम वाली भौजी सेहो भैरवीके ँ चुप करेने छली।
ओहि दिनक बादसँ हम आ भैरवी कॉलेज जेबाक क्रममे वा कलम गाछीमे नुका कऽ एक दोसरसँ गप शप करऽ लगलहुँ। कहियो काल गाम वाली भौजीक आङन सेहो हमरा लोकनिक मिलन स्थल बनऽ लागल। ओना एहि प्रेम मिलनक क्रममे हमरा लोकनि मर्यादाक उल्लंघनक कोनो प्रयास नञि केलहुँ। सम्भवत: ईहो एक गोट कारण छल जे गाम वाली भौजी हमरा लोकनिक मदति कऽ रहल छली। 
इण्टरक परीक्षा पास करबाक बाद हम आइआइटी करबा लेल कोलकाता आबि गेलहुँ। भैरवी जेके कॉलेज बिरौलमे कला विषय लऽ आगाँ पढ़ऽ लगली। मोबाइल-फोनक युग नञि हेबाक कारणे ँ कोलकाता एबाक बाद हमरा आ भैरवीक बीच सम्पर्क केर कोनो माध्यम नञि रहल। ओना कहियो काल गामवाली भौजीक नाम चिट्ठी लिखि भैरवीक कुशल क्षेम जानि लै छलहुँ। भौजीक माध्यमे भैरवी सेहो मास दू मासक बाद चिट्ठी पठबै छली।
दोसर सेमिस्टरक परीक्षासँ किछु दिन पहिने गामवाली भौजीक चिट्ठी आयल छल। एहिमे ओ हमरा चेतौनी दैत कहने छली जे भैरवीक सन्दर्भमे अपना मायसँ हम शीघ्र गप करी। कारण भैरवी लेल ओकर माता-पिता वर ताकि रहल छथि। सम्भव अछि जे अन्तिम लगन धरि विवाहो भऽ जाय। चिट्ठी पढ़बाक बाद हम नेयारि नेने छलहँु जे एहि बेर छुट्टीमे गाम जा माय-बाबूजीसँ भैरवीक सन्दर्भमे अवश्य बात करब। हमरा पूर्ण विश्वास छल जे हमर बात माय अवश्य मानती। 
गाम एबाक बाद सभसँ पहिने हम मायसँ एहि सन्दर्भमे बात के लहँु। हुनका ई जानि बड़ आश्चर्य भेलनि जे हम भैरवीसँ प्रेम करै छी आ विवाह सेहो करऽ चाहै छी। पहिने तँ माय हमर बात मानबा लेल तैयारे नञि भेली, मुदा अन्तमे हमर ई धमकी काज कऽ गेल जे भैरवीसँ विवाह नञि भेल तँ हम आजीवन कुमारे रहब। ओ बाबूसँ बात करबा लेल मानि गेली। कने नाकर नुकुरक बाद बाबू सेहो एहि प्रस्तावपर अपन स्वीकृतिक मोहर लगा देलनि।
ई खुशखबरी सुनेबा लेल जखन हम गामवाली भौजीक आङन जा हुनकासँ कहलहुँ तँ हुनका कोनो तरहक प्रसन्नता नञि भेलनि। हुनक ई व्यव्यवाहर देखि हमरा बड़ आश्चर्य भेल। जखन हमरासँ नञि रहल गेल तँ हम भौजीसँ पूछलहुँ-
भौजी की बात अछि? की अहाँ केँ ई बात सुनि नीक नञि लागल?
- नञि से बात नञि अछि, मुदा .......।
- मुदा की भौजी, किछु भेल अछि की, कहू ने।
- आब की कही, किछु कहबा लेल आ सुनबा लेल नञि बचल अछि। 
- सोझ-सोझ कहू भौजी की बात अछि? बातकेँ एते जिलेबी जकाँ किए घुमा रहल छी?
- आब भैरवी अहाँक नञि रहली। 
- हमर नञि रहली, माने।
- माने ई जे ओकर मामा आ नाना दू दिन पहिने ओकर विवाह चोरा कऽ करा देलथिन। बेचारी अहाँक बाट तकैत-तकैत अन्तमे हारि मानि गेली। 
भौजी ओहि ठामसँ एबाक बाद हम बिना किनको किछु कहने कोलकाता घुरि गेलहुँ। एकरा बाद जेना गामसँ हमर मन उचटि गेल। गाम आयब-जायब बन्ने जकाँ भऽ गेल। एक-दू बेर एबो केलहुँ तँ टिकलहुँ नञि। केम्हारो जाइ नञि। जेम्हरे जाइ ओमहर भैरवीक छवि नजरि आबय। एहि बेर एलहुँ तँ घरसँ बहरा सोझे मन्दिर गेल रही। गेल तँ रही मन मारि कऽ मुदा घूमल रही प्रसन्नता आ उदासी नेने। प्रसन्नता छल भैरवीसँ भेट हेबाक। मने मन हुनक उज्ज्वल आ सुखद भविष्यक कामना बाबासँ केने रही। संगहिँ उदासी छल एहि बातक जे परिस्थिति अनुकूल होइतो भैरवी हमरासँ बहुत दूर भऽ गेल छली। 
आ जखन मायसँ ई जानकारी भेल जे भैरवी गाममे रहैत अछि, सासुर नञि जाइत अछि तँ अकचका उठल रही। मायसँ बेसी पूछब उचित नञि लागल आ हम पूरे पाँच बरखक बाद गामवाली भौजीक आङन पहुँचि गेल रही। आङनमे सभ किछु ओहिना छल, मुदा आब ओ भैरवीक संग भेट केर स्थल नञि रहल से उदास लागल। भौजीक कुशल-क्षेम पुछलियनि। भैरवीक बात चलिते ओ भौजी उदास भऽ गेली। ओ जे किछु कहलनि से सुनि हमरा अपनापर बड़ तामस चढ़ल। संगे पछताओ रहल छलहुँ जे विवाहक बाद भैरवीसँ बिनु भेट केने हम कोलकाता किए चलि गेल रही। 
भौजी कहलनि जे विवाहक पन्द्रहमे दिन भैरवी गाम आयल छल। ओकरा संग पति गाम नञि आयल छलै। पहिल बेर जे ओकर पति गाम गेलै से आइ धरि घूरि कऽ नञि एलै। भैरवी गाम एबाक बाद हुनकासँ कहने छल जे ओकरा  पतिक संग बियाहे टा भेलै। ओकर पति तँ विवाहक रातियेमे कहि देने छलै भैरवीक मामा आ नानासँ जे जहिना अहाँ लोकनि हमर जीवन बर्बाद कऽ रहल छी, तहिना हम अहाँक नतनीक जीवन नारकीय कऽ देब। ओना ताहि समय भैरवीक नाना आ मामा एहि बातपर कोनो ध्यान नञि देलनि। एकर परिणाम ई भेल जे भैरवीक पति ओकरा कहियो नञि टोकलक। टोकत की, घुरि कऽ एबो ने कयल। 
विवाहक जखन तीन बरख बीति गेल आ भैरवीक पति घूरि कऽ नञि एलै तखन गामक लोक भैरवीक सासुर जा ओकर पति, सासु आ सुसरपर पञ्चैती बैसेलनि। पञ्चैतीमे भरैवीक पति साफ कहलक जे ओकर विवाह जबरदस्ती कराओल गेल ते ँ ओ एहि विवाहकेँ नञि मानैत अछि। भैरवी लेल ओकरा हृदयमे कोनो स्थान नञि अछि। 
गामक लोकवेद द्वारा बेसी दबाव देल जेबाक बाद भैरवीक पति ओकर द्विरागमन करेबा लेल तैयारत भेल, मुदा एक गोट शर्तपर। ओकर कहब छल जे ओ भैरवीकेँ अपना घरमे राखत, मुदा खर्चा देबाक अतिरिक्त ओ कोनो तरहक सम्बन्ध नञि राखत। 
भैरवीकेँ जखन एहि शर्तक सम्बन्धमे ज्ञात भेल तँ ओ सासुर जेबासँ साफ नठि गेल। माता-पिताकेँ कल जोड़ि ओ दू टूक कहलक जे एक बेर तँ अहाँ लोकनि हमर जीवन नष्ट कऽ चुकल छी। दोसर बेसी कमसँ कम एहन नञि हेबाक चाही। एहन पतिक संग रहि कोन लाभ जे अपना घरमे स्थान तँ देत, मुदा हृदयक केबाड़ बन्न राखत। ओहि दिनक बादसँ भैरवी गाममे रहि गेली। नीक शिक्षा प्राप्त हेबाक कारणे ँ ओ गामक धिया पुताकेँ ट्यूशन पढ़ाबऽ लगली आ एहि माध्यमे अपन जीवन बितबऽ लगली। 
गामवाली भौजीक मुँहे भैरवीक सभ स्थिति जानि हमरा मनमे आशाक किरण जागि गेल। भौजीक माध्यमे हम भैरवी लग समाद पठेलहुँ जे हम हुनकासँ एसगरमे भेट करऽ चाहै छी। 
तय भेल जे हमरा लोकनि चन्दे्रश्वर बाबक मन्दिरपर भेट होयब। ककरो कोनो तरहक सन्दहे नञि हो एहि लेल गामवाली भौजी सेहो भैरवीक संग आयल छली। बाबाकेँ साक्षी मानि हम भैरवीकेँ अपनासँ विवाह करबाक प्रस्ताव देलहुँ। हमर प्रस्ताव सुनि आवेशमे आबि ओ तमसाइत बजली- अहाँकेँ बूझल अछि ने जे हम विवाहिता छी, तखन एहि तरहक प्रस्तावक कोन प्रयोजन?
-भैरवी अहाँकेँ चन्द्रेश्वर बाबाक सपत्त अछि सत्त-सत्त बाजू..... सीथमे सिनुर लगेबाक अतिरिक्त अहाँक पति अहाँसँ कोन सम्बन्ध रखलक अछि? हमरा लेल एखनो अहाँ वैह भैरवी छी जे पहिने छलहुँ। जँ अहाँ अपन ओहि पतिक प्रतीक्षा कऽ सकै छी जे आइ धरि अहाँकेँ अपन नञि मानलनि, तखन हम अहाँ लेल अवश्य प्रतीक्षा करब किए तँ अहाँ सामाजिक संस्कारक हिसाबे भने हमर नञि छी, मुदा हम तँ अपन मानिते छी, भैरवी! हम जीवनक अन्तिम क्षण धरि अहाँक प्रतीक्षा करब......।
ई कहि हम चट ओहि ठामसँ विदा भऽ गेलहुँ। 
घर आबि एहि सन्दर्भमे हम ककरोसँ किछु नञि क हलहुँ। छुट्टी समाप्त हेबामे एखन दू दिन बाँचल छल। माय हमरा सोझाँ विवाह करबाक प्रस्ताव रखलनि। हम हुनका दू टूक कहि देलहुँ जे हम विवाह नञि करब। माय केर कहब छलनि जे हम कमसँ कम कन्याक फोटो तँ देख ली। एकरा बाद जे हम निर्णय करब, माय तकरा स्वीकार करती। हुनकर अवज्ञा नञि हो एहि लेल हम कुमोनसँ फोटो देखबा लेल मानि गेलहुँ। हुनका हाथसँ फोटो लऽ अनमानायल मनसँ हम फोट देखबाक प्रयास केलहुँ, मुदा ई की.....फोटो देखि हमर मन सातम आसामानपर उड़ऽ लागल। फोटो वाली युवतीतँ सत्ते बड़ बेसी सुन्नर छली। हम मायसँ पुछलहुँ- की ई हमरासँ विवाह करबा लेल तैयारी हेती? 
हुनका किछु बजबासँ पहिने परदाक अढ़मे नुकायल भैरवी बाहरि आबि बजली- जखन अहाँ हमरा लेल जीवनक अन्तिम क्षण धरि प्रतीक्षा कऽ सकै छी, तखन की हम अहाँ लेल सीथमे नव सिनुर नञि सजा सकै छी?
ताबत बाबूक संग टोलक कतेको गणमान्य आङन आबि ठाढ़ भऽ गेल छला। हम भैरवी आ माय-बाबूक संग समाजक उपस्थित गणमान्यक मुँह ताकि रहल छलहुँ आ मने मन सोचि रहल छलहुँ जे समाज एक डेग आगाँ बढ़ेलक आ एकैसम शताब्दीमे आबि ठाढ़ भऽ गेल अछि। 
गामवाली भौजी कखन एली से नञि बुझलियै। बुझलियै तखन जखन ओ चौल केलनि- ए भैरवी दाइ, अहूँ सभ किछु घोरि कऽ पीबि गेलहुँ। सिनूर नञि देलनि तेँ की आब तँ घरेवला ने छथि। लोक सभ ठाढ़ छथि आ ई वरकेँ देखि तिरिपति भऽ रहल छथि। 
गामक सम्माननीय वयोवृद्ध भोलन बाबा कहलनि- एहन डेग अनर्गल नञि...नीक निर्णय छऽ सभक। ओ लाठी खुटखुटबैत बिदा भऽ गेला। लाठी केर ठक-ठक स्वरसँ लागि रहल छल जेना पुरना शताब्दी नवका शताब्दीक सकारात्मक निर्णयपर मोहर मारि रहल हो।  

नोट- 81म कथा गोष्ठी सगर राति दीप जरयमे हमरा द्वारा पढ़ल गेल कथा

-रोशन कुमार मैथिल
मिथिला आवाज 
दरभंगा (मिथिला)
08292560971

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