- एक समय छल जखन विदेह पर नव गजलकार लोकनिक पथार लागि गेल छल। लाग' लागल छल जे आब मैथिली गजलक दिन सेहो घूरतै। पहिने सरल वार्णिक बहर आ तदुपरांत अरबीओ बहरमे बहुत रास गजल सभ परसय जाए लागल। सोआद लेनाय शुरुए केने छलहुं आ की ..... किछुए मासक उपरांत सभ किछु छिडिया गेल। बहुत रास गोटे नीक स्तर तक पहुँचलाक उपरान्तो एहि बाटसँ कात भ' गेला। कारण इहो भ' सकैछ जे ओ सभ अपन-अपन काजमे बेशी व्यस्त भ' गेल हेताह/हेतीह। मुदा दुर्भाग्यवश कारण ई नहि अछि। किएक त' ओ सभ आन-आन मंच पर आन-आन विधा या भाषामे खूब रास रचना सभ परसि रहल छथि।
त' की ओ सभ गजल विधासँ अकछ भ' गेल छथि? आ की एहि विधामे आब नै ... बहुत भ' गेल, आब दोसरो विधा सभमे नाउ कएल जाए? आ की सरल वार्णिक बहरसँ अरबी बहर तक के बाटमे कतहु अटकल छथि, ठमकल छथि? हुनका लोकनि के गजल के मुख्य धारासँ जोड़बाक लेल की कोनो प्रयासक बेगरता नै अछि? की कोनो पहल कएल जा रहल अछि वा कएल गेल अछि?
हुनका लोकनिक विकल्पमे नव गजलकार सभके एहि विधामे आनल जा सकैछ। मुदा हुनका लोकनि के "नव"सँ पुरान हेबामे जे ऊर्जा खपाएल गेल (चाहे ककरो) तकर की हिसाब? आ नव गज...और आगे देखें
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