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सोमवार, 23 जुलाई 2012


कखन धरि बैसब अनका दुआरि पर ,
जाउ एकबेर बैसु जा अपना आरि पर ,....

लागल अछि बुझबा मे एक-दोसर कए ,
चढ़ल अछि सब कत्तौ कोनो कंसारि पर ,...
 
जीनगीक मने बदलि गेल छै दुनियाँ मे ,
धार बहै खुनक.बस एक्केटा गारि पर ,....

आब जग मे जीनाइ सँ सस्ता मरनाइ छै ,
देवतो नै सुनै छथि ककरो गुहारि पर ,....

‘गुंजन’ ठमकि नै जाइ शब्दक संवेदना ,
कहीँ शब्दो नै बिका जाइ कोनो अरारि पर . . . । 

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