कखन धरि बैसब अनका दुआरि पर ,
जाउ एकबेर बैसु जा अपना आरि पर ,....
लागल अछि बुझबा मे एक-दोसर कए ,
चढ़ल अछि सब कत्तौ कोनो कंसारि पर ,...
जीनगीक मने बदलि गेल छै दुनियाँ मे ,
धार बहै खुनक.बस एक्केटा गारि पर ,....
आब जग मे जीनाइ सँ सस्ता मरनाइ छै ,
देवतो नै सुनै छथि ककरो गुहारि पर ,....
‘गुंजन’ ठमकि नै जाइ शब्दक संवेदना ,
कहीँ शब्दो नै बिका जाइ कोनो अरारि पर . . . । ।
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