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रविवार, 29 अप्रैल 2012

बापक दुलैर बेटी





भिनसरे काका साइकिल के साफ करैत काकी सँ 


कहलखिन जे खाना सबेरे तैयार करैथ आ बहिन लेल 

कथा-वार्ता में गुनदेवजी के संग मधुपुर जेबाक छन्हि। काकी उत्सुकतावश काका सँ पूछलखिन - कि कोना वर-घर? काका कहलखिन - जाउ ने! कतेक पूछय लगैत छी! खाना बनाउ, माथ जुनि खाउ। काकी सदैव जेकां चुप्पे रहैत बरबरेली जे - जाउ.. अहाँके आदत नहि सुधरत... एक रत्ती हमरो सभ के बता देब तऽ कि बिगड़त अहाँके? .. फेर काका साइकिल साफ करैत रहलाह आ काकी चुल्हा निपय लगलीह। बहिन के शोर करैत कहलखिन जे बापक खेनै जल्दी बनबैक छौक, दु पैली चाउर के धो आ आलु काट, कोठी पर सऽ कुम्हरौरी के मटकुरी ला... जल्दीमें भात आ आलु-कुम्हरौरी के झोरहा बना दैत छियन्हि। तोरो कपार केहेन छौक दाइ... कतेक जगह पुरि गेल एहि साल... देखही आब आइ कि होइत छैक।


काका नहा-सोहा पूजा-पाठ सऽ फुर्सत पाबि फेर आवाज लगौलनि - हे! सुनैत छी... जल्दी परसू। गुनदेवजी अबिते हेता। जल्दी-जल्दी पिढिया लगाके खेनै परैस देल गेलनि आ हबर-दबर दस कर खाइत काका तैयार भऽ के साइकिल लेने दरबाजा पर आबि गुनदेवजीके इन्तजार करय लगलाह। कथा-कुटमैती में जाइ वास्ते कन्यागत संग देनिहार बहुत समयके पाबंद होइत छथि - से कनेकबा काल में गुनदेवजी चिकरय लगलाह - भाइ! हम आबि गेल छी। काका सेहो दलानके घर सऽ बहरा गेलाह आ ‘नारायण-नारायण’ कहैत कुटमैती प्रस्तावना दिस विदाह भऽ गेलाह।

मधुपुर गाम सऽ कनेकबा दूर धारके ओहिपार छोट-छिन बस्ती! प्राकृतिक सुन्दरता के बखान कि जतय प्रकृति के मनोरम आशीष पवित्र नदी कमला-बलान बहैत हो! काका आ गुनदेवजी के पहुँचय सऽ पहिने वरागत के दरबाजा पर चौकी ऊपर उजरका जाजिम बिछायल मसलंग लागल आ दु-चारि टा कुर्सी सेहो सजा के राखल छलैक। कुटुंब दरबाजा पर एलाह... रे फल्लमां! जल ला, कुटुंब के पैर धो। गमछी दहुन। तारातारी सभटा भेल आ कनेक काल कुशल-क्षेम आ खेती-पाती-मौसमके कहर आदिके बात भेला उपरान्त कथा-वार्ता शुरु भेल। वरागत बजलखिन जे अहोभाग्य जे अपने समान कर्मठ लोक हमर दरबाजा पर आयल छी... अपनेक बचिया के पढाइ-लिखाइ के बारे में सुनल - बहुत सुन्दर लागल। आइ-काल्हि जौं बेटी पढल-लिखल नहि हो तऽ उचित नहि। ऊपर सऽ हुनकर स्वभाव आ सुशीलता अपनेक गामके एक कनियाँ हमरा गाम में छथि हुनका द्वारा सुनल से बहुत प्रसन्नता अछि आ हम सभ अपने ओतय कुटमैती करय लेल तैयार छी। बात-ब्यवस्था लेल गुनदेवजी के कहि देने छियन्हि। आपसी वार्ता एहि तरहें होइत रहल आ अन्ततोगत्वा काका पूछलखिन जे हम तऽ खाली हाथ बस बेटी टा देबय लेल अपनेक दरबाजा पर आयल छी। से हमरा अपने आदेश करू।

गुनदेवजी सेहो काका के पक्ष सऽ बात रखैत कहलाह जे - एहेन सुशील कन्या अपने एहि परिवार में देबैक से कम पैघ बात नहि भेल हिनका सभ के लेल, ब्यवस्था कोन बात भेल.. बस बरियाती के स्वागत हेबाक चाही।

एतबा सुनैत देरी लड़का के पित्ती जे नारायणपुर के उच्च विद्यालय के शिक्षक छलाह से कूदि पड़लाह - कोनो लड़का अपांग छैक आ कि एकर कुटमैती आर कतहु सुन्दर परिवार में संभव नहि छैक, गुनदेवजी! अहाँ कहने बिन ब्यवस्था हम सभ विवाह लेल हाँ कही?

काका सीधा लोक - गुनदेवजी के देखायल एहि कुटमैती करय के ईश्वरके अनुकम्पा बुझैत आयल छथि आ आब शुरु भऽ गेल अछि घमासान... गुनदेवजी एक तरफ एहि कुटमैतीमें एको पाइ के माँग के विरोध कय रहल छथि, हुनका परिवार, कनिया, संस्कार, कुल-मूल.. एतबी चाही अपन कुटुम्बके बेटा के विवाह में... मुदा दियाद सभ के झमेला दरबाजा पर देखनुक भऽ गेल। केओ केम्हरो सऽ बाजय लागल जे बुझू तऽ आइ-काल्हि बिना ब्यवस्था विवाह करब तऽ महादरिद्रीके संकेत करैछ। से लड़की के पिता के अपनहि सोचबाक चाही। काका के नहि रहल गेलन्हि.. ओ बजलाह जे हे! अहाँ सभ के सुन्दर-सुशील कनियां दी, हम ड्योढि खानदान आइ आर्थिक रूप सऽ भले पिछड़ल होइ लेकिन संस्कार आइयो हमर सभ के सभ सँ बेसी प्रशंसनीय अछि... से आयल छी अहाँ के द्वारि पर आ बेटीके बाप थिकहुँ तऽ पाग हाथ में रखने छी अपनेक लोकनिक चरणमें समर्पित करय लेल... लेकिन एना झमेलाबाजी करैत हमर मन के विचलित कय देलहुँ। बुझू हमर आत्मा अप्रसन्न भऽ गेल। हम एहि कुटमैती करय लेल तैयार नहि छी। हम विपन्न लोक भले कि ब्यवस्था दऽ सकब। बेटी हमर सम्पत्ति थिकी। बस हुनकहि टा दऽ सकब। विशेष अहाँ सभ स्वयं विचारू। यदि हम एहि लायक होइ जे अहाँ सभ के परिवार सऽ जुड़ि सकी तऽ जोड़ल जाय आ पूर्ण आदर्श के रूपमें... नहि तऽ आज्ञा देल जाय।

एतेक सुनला के बाद एक बेर सभ सन्न रहि गेल। लड़का के पित्तीके सेहो मुँह अपन बात पर रहितो आगू फैसला करैक लेल कुण्ठित भऽ गेलनि। लड़काके परिवार के पता छलैक जे कनियां बहुत सुशील आ सुन्दर के संगमें एक नीक, ईमानदार, कर्मठ आ अयाची पिता के बेटी छथि आ एहेन कनियां फेर दोसर जगह कहिया भेटत। लड़का के जेठ भाइ मूल अभिभावक - एम्हर वास्तविकता के आत्मसात्‌ करैत छलाह ओम्हर अपन समाज-परिवार के फिजूल दबाव बुझितो किछु बाजि हुनका सभके प्रतिकार करऽ के स्थितिमें नहि छलाह। ई समय भले किछु सेकेण्ड के मात्र रहल लेकिन अत्यन्त गंभीर आ घनघोर छल बहुतो उपस्थित घरवारिक आ अतिथि लेल। यदि केओ हल्लूक छलाह तऽ काका जे आइ धैर कोनो काज केवल ईश्वर के कृपा सऽ होइत बुझैत छलाह आ अपन बेटीके तकदीर पर हुनका एकदम उम्मीद छलन्हि जे जतय हेतैक नीके हेतैक। चुप्पी काका तोड़लाह - उठु गुनदेवजी! चलबाक तैयारी करू।

लड़का के जेठ भाइ आब समय के जोर बुझैत सभ किछु बिसैर बस अपन आत्माके बात बजलाह - कहय लगलाह उदासीन भाव सऽ... देखू! केहेन अछि हमरा सभ के दस्तुर। एक बेटीके पिता अपन पाग लऽ के ठाड़्ह छथि हमरा लोकनिक सोझाँ... आ हम सभ अतिथिसेवी मिथिलावासी हिनकर मंशा के बुझितो अबूझ बनि रहल छी। मास्टर साहेब! एहेन ढकोसला समाज प्रति हमरा मन में कनिको श्रद्धा नहि बचि गेल आब जे हम दहेज मुक्त विवाह करी तऽ हमरा कोसय... हमर परिवार के कोसय... हमर भाइ के कोसय... हम सभ कलंक अपन माथ पर रखलहुँ। हमरा चाही बस एक सुशील सुशिक्षित नारी जे घरमें हमर भाइ के संग लक्ष्मी बनि के आबैथ - हमर वृद्धा माय के सेवामें लागैथ - हमर समस्त परिवार लेल नव-उपहार जे हुनक शील-स्वच्छ-आचार सऽ एहि घरमें प्रवेश करय... बस.. एतबी टा चाही। आ आइ जे व्यक्तित्व हमर दरबाजा पर हमर छोट भाइ लेल आयल छथि हिनकर हरेक छवि सऽ हम समस्त परिवार प्रभावित छी आ आशा करैत छी जे हिनक कनियां सेहो एतबा प्रभावशाली हेतीह। बस, हमरा चाही यैह परिवार - नहि चाही कोनो ब्यवस्था-विचार के व्यवहार।

गुनदेवजी के संग-संग काका के चेहरा पर ऐश्वर्यपूर्ण मुस्कान आबि गेल - आत्मसंतुष्टि के प्रवेश याने ईश्वर प्रति समर्पण आ समक्ष उपस्थित भगवान्‌रूपी व्यक्तित्वके त्याग प्रति नतमस्तक होइत जेना कोनो भक्त अपन भगवान्‌ प्रति समर्पित होइछ... बस किछु एहने समागम बनल ओहिठाम... लेकिन कुटिल हृदय के लालची-लोभी लेल एतेक सुनब कठिन बनि गेल... फुफुवा उठला मास्टर साहेब... बाजि उठलाह... हे रौ! रामा! तोंही सभ सऽ पैघ भऽ गेलें? समाज के रहैत तोहर बात नहि चलतौ। एखन हम छी आ हमर बौआ के विवाह लेल अधिकार काका हमरहि छोड़ि के गेल छथि। खबरदार जे तों राजा हरिश्चन्द्र बनिके ई व्यक्तिपूजा आ सुन्दर-सुशील-सुशिक्षित कनियां के उपदेश हमरा केलें तऽ... । बस चुप कर आ बाज - यदि बेटीके बाप नहि करथिन इन्तजाम तऽ डीह बेचि के घरमें भाभौ अनबें? जे परिवार के व्यवहार रहल अछि ओ कोना के करबें?

समाजमें एना अनेको अवसरपर देखल जाइछ जे केओ नैतिकता के बात करत तऽ व्यवहार के आडंबर सऽ पुनः ओकरा त्रास देखायल जाइत छैक। पुनः माहौल में परिवर्तन भेल। फेर एक बेर लड़का के जेठ भाइ रामा ऊपर मास्टर साहेब के दबाव आ बैसल दहेज लोभी समाज के चाप - ई देखि पुनः काका के मन उद्वेलित भेलन्हि। लेकिन रामा भैया के त्याग देखि एहि बेर काका के भीतर एक जोश के प्रवेश भेल छल जे बाद में जरुर हिनकर नीक व्यवहार होयत, एखन समाज के समक्ष किछु गैछ ली आ सभ के मन मना दियैक। बस ई सोचि काका कहलैथ - कि यौ गुनदेवजी! हम तऽ कहने रही ने... आइ-काल्हि लड़की के मूल-गोत्र-कुल-खानदान-सुन्दरता-शिक्षा-सुशीलता... ई सभ फेका जाइछ किनार आ अन्त में एकहि बात अबैछ जे ब्यवस्था कतेक? से बताउ... आब हम अहीं सभ सऽ सुनय लेल चाहैत छी जे कि ब्यवस्था होयबाक चाही। हम छी गरीब, लेकिन दरिद्र नहि जे बेटीके बियाह लेल हम एतबो ब्यवस्था नहि कय सकब। भीखो माँगि के होयत तऽ बेटीके कनियांदान नीक जेकां करब। हिनकर परिवार के सम्मान के रक्षा करब हमर प्रथम कर्तब्य बूझब। कहू मास्टर साहेब! अहीं सऽ पूछैत छी?

मास्टर साहेब के आब एतेक बुझेलैन जे हमर पूछ भेल आ रामा के इच्छा पहिले सऽ छहिये... आब हुनका मुँह सऽ माँग करब भारी बुझाय लागल। कनेक काल ओलमा-दोलमा भेला के बाद लड़की के पिता के भूमिका किछु अपनहि धार पर झूकल देखि मास्टर साहेब सेहो द्रवित भऽ गेलाह आ कहलाह - श्रीमान्‌! अपने सच में महान्‌ थिकहुँ। बेटीके विवाह लेल भीख के गप कहि हमरो तोड़ि देलहुँ। आब जाउ, एहि लड़का लेल एक जोड़ धोती आ कुर्ता के कपड़ा लऽ आउ आ एतय सऽ पाँच गोट गार्जियन जाय साधारण रूपमें विवाह के सम्पन्न कराउ। एतेक कहैत मास्टर साहेब दुनू हाथ सऽ काका के हाथ पकैड़ कहलखिन - एहि हाथ सँ छौड़ा के भैर मन सऽ आशीर्वाद धैर देबैक... बस - एकर विवाहित जीवन सुखमय बनल रहैक आ एहि पृथ्वी पर एकर सभ के नीक-नीक प्रखर सन्तान आबैक आ हमर फल्लां काका के परिवार मर्यादित ढंग सऽ आगू बढय। रे! उमेश! चल आबे। आशीर्वाद ले।

सभ के मन प्रफूल्लित भऽ गेलैक। काका सेहो भैर मन सऽ सभ संग गला मिलय लगलाह। दरबाजा पर अतिथि स्वागत के अगिला दौर आ ओ मिथिलांग के व्यवहार सभ के बीच अनेको ठहाका सऽ दरबाजा पर मानू एहेन अबस्था बनि गेल जेना स्वयं ईश्वर एहि निर्णय सऽ प्रसन्न होइत ऊपर सऽ फूल के बरसात कय रहल होइथ। सभ हंसी-खुशी सम्पन्न भेल - विवाह के दिन तय भेल आ आइ उमेश - कंगना सँ एहेन परिवार के निर्माण भेल अछि जे समूचा खानदान के नाम रौशन कय रहल अछि। त्याग के - बलिदान के - सम्मान भले पृथ्वी पर के लोक नहि बुझैत हो... वा बुझय में देरी करैत हो... लेकिन ईश्वरके घरमें एकर बहुत पैघ सम्मान छैक। एकर जीवित प्रमाण आइ एहि जोड़ीके सदाबहार जीवन सँ देखय लेल लोक के भेटैत छैक। काका नहि छथि, लेकिन हुनकर आत्मा ऊपर सँ ई सभ देखि समस्त मिथिला समाज के एहने आदर्श अपनाबय लेल कल जोड़ि विनती कय रहल छथि। स्वच्छ व्यवहार असल अतिथि सेवा थीक, नहि कि सभ तरहें ठोकि बजा के देखलाके बाद दहेज के माँग कोनो लड़कीके पिता पर थोपब आ तखन अपन पैघत्व बखारब। मिथिला में महान्‌ विभुति सभ के पैदाइश किछु एहने त्याग आ बलिदान के नींव पर भेल छैक। जतय-जतय दहेज रूपी दबाव के लाद कोनो परिवार पर देल गेलैक, ओतय-ओतय कोनो ने कोनो तरहें दरिद्रा अपन ताण्डव देखेबे टा केलकैक, देखेबा टा करैत छैक आ देखेबे टा करतैक।

एहि कथा सँ बहुतो लोभी-लालची परिवार के नजैर खुलतैक, अतः अपने सभ सँ निवेदन जे एकरा अपन हरेक इष्ट-मित्र सँ जरुर शेयर करी।

हरिः हरः!

(उपरोक्त सत्यकथा में पात्र एवं स्थान के नाम काल्पनिक छैक, यदि किनको सऽ मेल खाइत हो तऽ केवल संयोग बुझब आ मानवृद्धि बुझब जे एहेन त्याग आ बलिदान अपनोहो के परिवार में भेल। ईश्वर कृपा बुझब। दहेज मुक्त मिथिला निर्माण में सहयोगी बनब। लोभी-लालची मिथिला के नियंत्रणमें कार्यरत होयब। धन्यवाद। -

अपनेक - प्रवीण चौधरी ‘किशोर’ - ग्राम: 

कुर्सों, वर्तमान - विराटनगर - नेपाल।)

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