Blogger templates

रविवार, 11 मार्च 2012

गजल


धारक कात रहितो पियासल रहि गेल जिनगी हमर।
मोनक बात मोनहि रहल, दुख सहि गेल जिनगी हमर।

मुस्की हमर घर आस लेने आओत नै आब यौ,
पूरै छै कहाँ आस सबहक, कहि गेल जिनगी हमर।

सीखेलक इ दुनिया किला बचबै केर ढंगो मुदा,
बचबै मे किला अनकरे टा ढहि गेल जिनगी हमर।

पाथर बाट पर छी पडल, हमरा पूछलक नै कियो,
कोनो बन्न नाला जकाँ चुप बहि गेल जिनगी हमर।

जिनगी "ओम" बीतेलकै बीचहि धार औनाइते,
भेंटल नै कछेरो कतौ, बस दहि गेल जिनगी हमर।
(बहरे मुक्तजिब)

2 comments:

  1. bahut nik blog ya ham dekhlo man khush bha gel, sange omprakash ji aur sab lekhak mandali ka seho vahut vahut dhanyabad je aha sab maithili ka vikas me jor shor sa yogdan da rahal chhi, maithili ka jyada sa jyada chij mile vala site http://www.maithilisongsjagat.co.in/ par click karu aur aanand liya

    जवाब देंहटाएं