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बुधवार, 3 अप्रैल 2013

विज्ञानक भाषा संस्कृत (लेखक- न्यायमूर्ति काटजू)


  विज्ञानक भाषा संस्कृत (लेखक- न्यायमूर्ति काटजू)

प्रिय मित्र, ई हमरा लेल सचमे गौरवक बात अछि जे इण्डियन इंस्टिट्यूट आफ साइंस, बुंगलुरु हमरा भाषाण देबाक लेल निमंत्रण देलक। आइ हम अपने लोकनिक समक्ष ‘विज्ञानक की भाषा के रूपमे संस्कृत’ केर क्षमताक  राखऽ चाहैत छी। एहि विषयकेँ हम दू गोट कारणसँ चयन केलौ अछि। पहिल तँ इ जे अंहा लोकनि सभ गोटे वैज्ञानिक छी। एहिलेल अपने लोकनि अपन पुरखाक वैज्ञानिक उलल्बधिक बारेमे अवश्य सुनऽ चाहब। दोसर ई जे भारत आइ जाहि समस्यासँ लड़ि रहल अछि , हमरा अनुसार मात्र विज्ञान ओकर समाधान निकालि सकै त अछि। भारतीय संस्कृतिक आधार संस्कृत भाषा अछि। एहि कारणे ँ एक गोट बहुत पैघ मिथक ई अछि जे ई मात्र मन्दिर आ धार्मिक कर्मकाण्डक मंत्रोच्चारक  भाषा अछि। सच तँ ई अछि जे एहन वस्तु संस्कृत साहित्यमे पाँच प्रतिशतसँ सेहो कम अछि। 95 प्रतिशत संस्कृत साहित्यक धर्मसँ कोनो लेब देब नञि अछि। ओ तँ दर्शन कानून, विज्ञान, व्याकरण्, ध्वनी विज्ञान आ व्याख्या सभसँ जुड़ल अछि। सचमे संस्कृत सवतंत्र विचार राखनिहारक भाषा छल, जे प्रत्येक वस्तुके ँ लऽ सवाल उठेलक आ विभिन्न विषयपर विशद विचार प्रस्तुत केलेक। प्राचीन भारतमे हमर विज्ञानि लोकनिक भाषा मात्र संस्कृत छल। एहिमे कोनो दू राय नञि अछि जे आइ हमरा लोकनि विज्ञानमे पश्चिमसँ पाछा छी। ओना एक समय छल जहिया एहि क्षेत्रमे भारत दुनिञाक अगुआ छल। हमर पुरखाक वैज्ञानिक उपलब्धि सभ हमरा लोकनिकेँ ओ नैतिक बल दऽ सकैत अछि, जाहिसँ हमरा लोकनि आधुनिक दुनिञामे भारतकेँ एक बेर फेरोसँ विज्ञानक क्षेत्रमे शीर्षपर पहुँचा सकी।

अनुवादक- रोशन कुमार ‘मैथिल’

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