Ashish Anchinhar साल 2012 के लिए मैथिलीमे युवा पुरस्कार पाने वाले अरूणाभ सौरभ को बधाइ...
मगर जब जगदीश प्रसाद मंडल जी को टैगोर सम्मान मिला था तब सौरभ ने बड़े गर्व से कहा था कि अगर मैं रहता तो इस बजारवादी पुरस्कार को नहीं लेता। क्योंकि यह प्रगतिशील और जनवादी साहित्यकार के अनुकूल नहीं हैं। मतलब यह कि टैगोर साहित्य सम्मान बजारवादी है....
वैसे अरुणाभ सौरभ अपने आप को तथा कथित प्रगति शील और जनवादी मानता है। यह युवा पुरस्कार भी तो सरकारी है... तब अरूणाभ जैसे प्रगतिशील को यह पुरस्कार देना गलत है। वैसे अगर दे भी दिया गया है तो खुद अरूणाभ को अपने जनवादी पक्ष को बरकार रखने केलिए इस पुरस्कार को त्याग देना चाहिये। मगर यह उम्मीद बेमानी है क्योकि कुछ दिन पहले यही अरूणाभ चेतना समीति जैसे ब्राम्हणवादी और भगवा संस्था से पुरस्कार ग्रहण किया है।
अगर अरूणाभ इस युवा पुरस्कार को नहिं त्यागते हैं तो इसका मतलब हैं कि उनका जनवाद और प्रगतिशील विचारधारा छद्म हैं।
और हम लोग अरूणाभ सौरभ का विरोध नहीं करते हुए उसके छद्म जनवाद की भर्तसना करते हैं।
फुटनोट--- सबके लिए यह जानना जरूरी है कि यह अरुणाभ सौरभ नाम का प्राणी जब हिन्दी मे लिखता है तो जनवादी बन जाता है और जब मैथिली मे लिखता है तो ब्राम्हणवादी।
वैसे भी जिस जूरी ने इसके जैसे छद्म लेखक का चयन किया उस जूरीपर थू----थू--थू---
यह थू----थू--थू--- इस लिए भी की मैथिली और हिन्दी मे लिखने वाले साहित्यिक रूप से संकर साहित्यकार को यह पुरस्कार दिया गया है।.
मगर जब जगदीश प्रसाद मंडल जी को टैगोर सम्मान मिला था तब सौरभ ने बड़े गर्व से कहा था कि अगर मैं रहता तो इस बजारवादी पुरस्कार को नहीं लेता। क्योंकि यह प्रगतिशील और जनवादी साहित्यकार के अनुकूल नहीं हैं। मतलब यह कि टैगोर साहित्य सम्मान बजारवादी है....
वैसे अरुणाभ सौरभ अपने आप को तथा कथित प्रगति शील और जनवादी मानता है। यह युवा पुरस्कार भी तो सरकारी है... तब अरूणाभ जैसे प्रगतिशील को यह पुरस्कार देना गलत है। वैसे अगर दे भी दिया गया है तो खुद अरूणाभ को अपने जनवादी पक्ष को बरकार रखने केलिए इस पुरस्कार को त्याग देना चाहिये। मगर यह उम्मीद बेमानी है क्योकि कुछ दिन पहले यही अरूणाभ चेतना समीति जैसे ब्राम्हणवादी और भगवा संस्था से पुरस्कार ग्रहण किया है।
अगर अरूणाभ इस युवा पुरस्कार को नहिं त्यागते हैं तो इसका मतलब हैं कि उनका जनवाद और प्रगतिशील विचारधारा छद्म हैं।
और हम लोग अरूणाभ सौरभ का विरोध नहीं करते हुए उसके छद्म जनवाद की भर्तसना करते हैं।
फुटनोट--- सबके लिए यह जानना जरूरी है कि यह अरुणाभ सौरभ नाम का प्राणी जब हिन्दी मे लिखता है तो जनवादी बन जाता है और जब मैथिली मे लिखता है तो ब्राम्हणवादी।
वैसे भी जिस जूरी ने इसके जैसे छद्म लेखक का चयन किया उस जूरीपर थू----थू--थू---
यह थू----थू--थू--- इस लिए भी की मैथिली और हिन्दी मे लिखने वाले साहित्यिक रूप से संकर साहित्यकार को यह पुरस्कार दिया गया है।.
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