ठाकुरक कुआँ (मुशी प्रेमचन्द्रक कथाक मैथिली अनुवाद, लेखक रोशन कुमार मैथिल)
जोखू लोटा मुंहसँ लगेलक तँ पानिमेसँ गन्ध आएल। ओ गंगीसँ कहलक- ई केहन पानि अछि ? गन्धक कारणे ँ पियल नञि जा रहल अछि। कण्ठ सूखा रहल अछि आ तू महकल पानि पियऽ लेल दऽ रहल छें!
गंगी सभ दिन साँझमे पानि भरि कऽ आनैत छली। कुआं दूर छल, बेर-बेर जाएब आसान नञि छल। काल्हि ओ पानि आनने छली, तखन तँ ओहिमे कोनो तरहक गन्ध नञि छल, आइ पानिमे गन्ध किएक ! लोटा नाकसँ लगेलक, तँ सचमुच गन्ध छल। अवश्य कोनो माल जाल कुआमे खसि गेल होएत, मुदा दोसर पानि कतऽ सँ आएत?
ठाकुरक कुंआपर के चढ़ऽ देत? दूरेसँ लोक सभ भगा देत? साहू केर कुआं गामक ओहि पार अछिै, मुदा ओतऽ पानि के भरऽ देत? कोनो आर कुआं गाममे नञि अछि।
जोखू कतेको दिनसँ बीमार अछि। किछ देर धरि तँ ओ प्यास रोकि चुप चाप पड़ल रहल, फेर कहलक -आब तँ त्रासक कारणे ँ रहल नञि जाइत। कनी पानि दे , नाक बन्न कऽ कहुना पी लै छी।
गंगी पानि नञि देलक। महकल पानि पीबासँ बीमारी बढ़ि जाइत एतेक ओकर बुझल छल, मुदा ओकरा ई नञि बुझल छल जे पानिकेँ खौला देलासँ ओ साफ भऽ जाइत अछि। ओ कहलक- ई पानि कोना पियब ? नञि जानि कोन माल जाल मरल अछि। ? हम दोसर पानि आनि दै छी।
जोखू आश्चर्यसँ ओकरा दिस ताकलक-पानि कतऽ सँ आनबें?
ठाकुर आ साहू केर दू गोट कुआं मात्र अछि। क्यौ एक लोटा पानि नञि भरऽ देतौ।
हाथ-पैर तोड़ा एमऽ आ किछु नञि हेतौ। बैस चुप चाप। ब्राहम्ण देवता आशीर्वाद देथुन, ठाकुर लाठी मारथुन , साहूजी एक के पाँच लेथुन। गरीबक दर्द के समझैत अछि ! हमरा लोकनि मरि जाएब तखनो क्यौ दुआरिपर ताकऽ आएत। कन्हा देब तँ बड़ पैघ बात अछि। एहन लोक पानि कोना भरऽ देता।
एहि शब्दमे कड़कपन छल, मुदा शोलह आन सत्य छल। गंगी की जवाब दैतै, ओना ओ महकल पानि पीबऽ लेल नञि देलक।
2
रातिक नओ बजल छल। थाकर हारल जन-बन सभ सुति चुकल छलां, ठाकुरक दलानपर दस-पॉँच निफिकरा सभक जमघट लागल छल। बहादुरी केर तँ जमाना रहल नञि, ने अवसर। कानूनी बहादुरीक गप भऽ रहल छल। कतेक होशियारीसँ ठाकुर थानेदारक एक गोट खास मोकदमाक नकल आनि लेलक। नाजिर आ मोहतिमिम, सभ कहै छला, नकल नञि भेट सक त। क्यौ पचास माङि रहल छल, तँ क्यौ सय। एतऽ बिनु पई केर नकल उड़ा देलक। काम करक ढ़ग एबाक चाही।
एहि समय गंगी कुआं सँ पानि भरबा लेल पहुँचल ।
ढ़िबियाक कनी इजोत कुआंपर आबि रहल छल। गंगी झाड़ीक ओढ़मे बैसि अवसरक प्रतीक्षा करऽ लागली। एहि कुआंक पानि भरि गामक लोक पीबैत अछि। किनको लेल रोक नञि अछि, मात्र ई अभागीन नञि भरि सकैत अछि।
गंगीक विद्रोही हृदय रिती रिवाजक पाबन्दि आ विवशतापर चोट करऽ लागल-हमरा लोकनि किएक नीच छी आ ओ लोकनि किएक उँच छथि? एहि लेल की हिनका लोकनिक गरामे बधि बान्हल रहैत अछि? एहि ठामतँ जतेक छथि, एकापर एक छथि। चोरी करथि ई लोकनि, ठग-फुसिया करैत ई सभ, झूठ मोकदाम ई करै। एखने ई ठाकुर ओहि दिन बेचारा गड़रियाक भेड़ चुरा नेने छल। बादमे मारि कऽ खा गेल। एहि पण्डितक घरमे तँ बारहो मास जुआ होइत अछि। यैही साहू जी तँ घी मे तेल भेट बेचै छथि। काज करा लै छथि, मजुरी देबाक समय नानी मरऽ लगै छनि। कोन कोना बातमे हमरा लोकनिसँ ओ उँच छथि, हमरा लोकनि गली-गलीमे चिकरैत नञि छी हम सभ ऊँच छी, ऊँच। कहिया काल गाममे आबि जाइत छी तँ , तँ रस-भरल आँखिसँ देखऽ लागै छथि। जेना सभक छातीपर साप लोटऽ लगैत हो, मुदा घमण्ड एहन जे हमरा लोकनि उँच छी। कुआंपर केकरो एबाक आहट भेल। गंगीक छाती धक-धक करऽ लागल। क्यो देख लेलक तँ गजब भऽ जाएत। एको लाति जमीनपर नञि पड़त। ओ घैला आ रस्सी उठा लेलक आ झुकि कऽ चलैत एक गोट गाछक ओढ़मे नुका गेल। कहिया हिनका लोकनिकेँ दया आबैत अछि केकरोपर! बेचार महगूकेँ एतेक मारि मारलक जे मास भरि खुन थूकैत रहल। एहि लेल ल ने जे ओ बेगारी नञि देने छल। एहीपर उँच लोक बनै छथि ई सभ। ?
कुआंपर एक गोट स्त्रि पानि भरऽ आएल छली। ओ लोकनि आपसमे गप कऽ रहल छली जे। खान खाए लेल चलला आ हुक्म केलनि जे टटाक पानि भरि कऽ आन। घैला लेल पाइ नञि अछि।
हमरा लोकनिके ँ आरमसँ बैसल देख पुरूख सभकेँ जलन होबऽ लागैत अछि।
ई तँ नञि होइ छनि जे कलसी उठा भरि आनता। बस, हुकुम देलनि जे टटाका पानि आन, जेना हमरा लोकनि कोना छुतहरनी होइ।
छुतहरनी नञि छी तँ की छी तु? रोटी-कपड़ा नञि भेटैत छौ? दस-पाँच टाका सेहो छीन छानि कऽ लऽ लै छें। छुतहरनी आर केहन होइत अछि। एतेक किएक लज्जीत नञि करू दीदीदीदी! दिन -भरि आराम करऽ लेल तरसैत रहैत छी। एतेक काज कोनो दोसर घरमे कऽ देब, तँ आरमसँ रहितौ। ऊपरसँ ओ एहसान सेहो मानितै! यैह काज करैत करैत मरि जाउ, मुदा केकरो मुँहपर कोनो मलाल नञि रहैत अछि।
दुनू पानि भरि चलि गेल, तँ गंगी गाछक ओढ़सँ निकली कुआंपर आएल। ठाकुर सेहो केबाड़ बन्न कऽ अन्दर आङनमे सुतऽ जा रहल छला। गंगी क्षणिक भरि सुखक सॉस लेलक। कोनो तरहे मैदान साफ तँ भेल।
अमृत चुरा आनबा लेल जे राजकुमार कोनो जमानेमे गेल छला, ओहो एतेक सावधानीक संग आ समझि-बुझि कऽ नञि गेल होएत। गंगी दबल पैरे कंआक चबुतारापर चढ़ल। जीतक एहन अनुभव ओकरा एहिसँ पहिने कहियो नञि भेल छल।
ओ रस्सीक फन्दा घैलामे देलक। दाया-बामा चौकन्ना भऽ नजरि दौरेलक, जेना कोनो सिपाही रातिकेँ शत्रुक किलामे सूराख कऽ रहल हो। जँ एहि समय ओ पकड़ि लेल गेल, तँ ओकरा लेल माफी वा छूटक कोनो उम्मीद नञि। अन्तमे भगवानकेँ स्मरण कऽ ओ अपन करेजा मजगूत केलक आ घैला कुआंमे खसेलक।
घैला पानिमे डूबल, बहुत धीरेसँ। कनिको आवाज नञि भेल। गंगी दू चारि हाथ जल्दी-जल्दी मारलक। घैलाक कुआंक मुँह धरि पहुँचल। कोनो पैघ पहलवान सेहो एतेका जोरसँ रस्सी नञि खींच सकैत छल।
गंगी झुकल जे घैलाके ँ पकड़ि कऽ चबुतरापर राखी, एकाएक ठाकुर साहबक दलान खुजि गेल। शेरक मुँह एहिसँ बेसी डराअउन नञि होएत।
गंगीक हाथसँ रस्सी छुटि गेल। रस्सीक संग घैला धड़ामसँ पानिमे खसल आ कतेको देर धरि पानिमे हिलकोरक अवाज सुनाइ दैत रहल।
ठाकुर के अछि, के अछि ? चीकरैत कुआं दिस जा रहल छला। गंगी चबुतरापरसँ फानि कऽ भागल जा रहल छली।
घर पहुँचि कऽ ओ देखलक जे लोटा मुँहसं लगाए जोखू ओ गन्दा पानि पीबऽ रहल छल।
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